कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
मैंने विस्मित होकर नाम पूछा।
उत्तर मिला–मुझे उमापति नारायण करते हैं।
मैं उठकर उनके गले से लिपट गया। यह वही कवि महोदय थे, जिनके कई प्रेम-पत्र मुझे मिल चुके थे। कुशल समाचार पूछा। पान इलायची से खातिर की।
फिर पूछा–आपका आना कैसे हुआ?
उन्होंने कहा–मकान पर चलिए, तो सब वृतांत कहूँगा। मैं आपके घर गया था। वहाँ मालूम हुआ, आप यहाँ हैं। पूछता हुआ चला आया।
मैं उमापतिजी के साथ घर चलने को उठ खड़ा हुआ। जब वह कमरे के बाहर निकल गए तो मेरे मित्र ने पूछा–यह कौन साहब हैं?
मैं–मेरे एक नए दोस्त हैं।
मित्र–जरा इनसे होशियार रहिएगा। मुझे तो उचक्के-से मालूम होते हैं।
मैं–आपका गुमान गलत है। आप हमेशा आदमी को उसकी सज-धज से परखा करते हैं। पर मनुष्य कपड़ों में नहीं, हृदय में रहता है।
मित्र–खैर, ये रहस्य की बातें तो आप जानें, मैं आपको आगाह किए देता हूँ।
मैंने इसका कुछ जवाब नहीं दिया। उपापतिजी के साथ घर आया। बाजार से भोजन मँगवाया। फिर बातें होने लगीं। उन्होंने मुझे कई कविताएँ सुनायीं। स्वर बहुत सरस और मधुर था।
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