कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
आप-बीती
साहित्य-सेवियों के जीवन में एक ऐसा समय आता है, जब पाठकगण उनके पास श्रद्धापूर्ण पत्र भेजने लगते हैं। कोई उनकी रचना-शैली की प्रशंसा करता है, कोई उनके सद्विचारों पर मुग्ध हो जाता है। लेखक को भी कुछ दिनों से यह सौभाग्य प्राप्त है, ऐसे पत्रों को पढ़कर उसका हृदय कितना गद्गद हो जाता है, इसे किसी साहित्य-सेवी ही से पूछना चाहिए। अपने फटे कम्बल पर बैठा हुआ वह गर्व और आत्मगौरव की लहरों में डूब जाता है। भूल जाता है कि रात को गीली लकड़ी से भोजन पकाने के कारण सिर में कितना दर्द हो रहा था, खटमलों और मच्छरों ने रात-भर कैसे नींद हराम कर दी थी। ‘मैं भी कुछ हूँ’ यह अहंकार उसे एक क्षण के लिए उन्मत्त बना देता है। पिछले साल, सावन के महीने में मुझे एक ऐसा ही पत्र मिला। उसमें मेरी क्षुद्र रचनाओं की दिल खोलकर दाद दी गई थी।
पत्र-प्रेषक महोदय स्वयं एक अच्छे कवि थे। मैं उनकी कविताएँ पत्रिकाओं में अक्सर देखा करता था। यह पत्र पढ़कर फूला न समाया। उसी वक्त जवाब लिखने बैठा। उस तरंग में जो कुछ लिख गया, इस समय याद नहीं। इतना जरूर याद है कि पत्र आदि से अंत तक प्रेम के उद्गारों से भरा हुआ था। मैंने कभी कविता नहीं की, और न कोई गद्य-काव्य ही लिखा; पर भाषा को जितना सँवार सकता था, उतना सँवारा। यहाँ तक कि जब पत्र समाप्त करके दुबारा पढ़ा, तो कविता का आनन्द आया। सारा पत्र भाव-लालित्य से परिपूर्ण था। पाँचवें दिन कवि महोदय का दूसरा पत्र आ पहुँचा। वह पहले पत्र से भी कहीं अधिक मर्म स्पर्शी था। ‘प्यारे भैया!’ कहकर मुझे सम्बोधित किया था; मेरी रचनाओं की सूची और प्रकाशकों के नाम-ठिकाने पूछे गए थे। अन्त में शुभ समाचार था कि ‘मेरी पत्नी जी को आपके ऊपर बड़ी श्रद्धा है, वह बड़े प्रेम से आपकी रचनाओं को पढ़ती हैं। वही पूछ रही हैं कि आपका विवाह कहाँ हुआ है। आपकी संतानें कितनी हैं, तथा आपका कोई फोटो भी है? हो, तो कृपया भेज दीजिए।’ मेरी जन्म-भूमि और वंशावली का पता भी पूछा गया था। इस पत्र, विशेषतः उसके अंतिम समाचार ने मुझे पुलकित कर दिया।
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