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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


यह कहकर भगतजी घर की ओर चले कि चौधरी दौड़कर उनके गले से लिपट गए। तीन पुश्तों की अदावत एक क्षण में शांत हो गई।

उस दिन से चौधरी और भगत साथ-साथ स्वराज्य का उपदेश करने लगे। उनमें गाढ़ी मित्रता हो गई और यह निश्चय करना कठिन है कि दोनों में जनता किसका अधिक सम्मान करती है।

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चकमा

सेठ चंदूमल जब अपनी दूकान और गोदाम में भरे हुए माल को देखते, तो मुँह में ठंडी सांस निकल जाती। यह माल कैसे बिकेगा? बैंक का सूद बढ़ रहा है, दूकान का किराया चढ़ रहा है, कर्मचारियों का वेतन बाकी पड़ता जाता है। ये सभी रकमें गाँठ से देनी पड़ेंगी। अगर कुछ दिन यही हाल रहा, तो दिवाले के सिवा और किसी तरह जान न बचेगी। तिस पर भी धरनेवाले नित्य सिर पर शैतान की तरह सवार रहते हैं।

सेठ चंदूमल की दूकान चाँदनी-चौक, दिल्ली में थी।मुफस्सिल में भी उनकी दूकानें थीं। जब शहर कांग्रेस-कमेटी ने उनसे विलायती कपड़े की खरीद और बिक्री के विषय में प्रतिज्ञा करानी चाही, तो उन्होंने कुछ ध्यान न दिया। बाजार में कई आढ़तियों ने उनकी देखादेखी प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।

चंदूमल को जो नेतृत्व कभी न नसीब हुआ, वह इस अवसर पर हाथ-पैर हिलाए ही मिल गया। वह सरकार के खैरख्वाह थे। साहब बहादुरों को समय-समय पर डालियाँ नजर देते रहते थे। पुलिस से घनिष्टता थी। म्युनिसपैलिटी के सदस्य भी थे। कांग्रेस के व्यापारिक कार्य-क्रम का विरोध करके अमन-सभा के कोषाध्यक्ष बन बैठे। यह इसी खैरख्वाही की बरकत थी कि युवराज का स्वागत करने के लिए अधिकारियों ने उनसे पच्चीस हजार के कपड़े खरीदे। ऐसा समर्थ पुरुष कांग्रेस से क्यों डरे? कांग्रेस है किस खेत की मूली! पुलिसवालों ने भी बढ़ावा दिया–मुआहिदे पर हरगिज दस्तखत न कीजिएगा। देखें ये लोग क्या करते हैं? एक-एक को जेल न भेजवा दिया तो कहिएगा।

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