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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


जनता ये बातें बड़े चाव से सुनती थी, और दिनोंदिन श्रोताओं की संख्या बढ़ती जाती थी। चौधरी सबके श्रद्धा-भाजन बन गए!

भगतजी राजभक्ति का उपदेश करने लगे–भाइयों, राजा का काम राज्य करना और प्रजा का काम उसकी आज्ञा–पालन करना है। इसी को राजभक्ति कहते हैं, और हमारे धार्मिक ग्रंथों में हमें इसी राजभक्ति की शिक्षा दी गई है। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है। उसकी आज्ञा के विरुद्ध चलना महान् पातक है। राजा का विमुख प्राणी नरक का भागी होता है।

एक शंका–राजा को भी तो अपने धर्म का पालन करना चाहिए।

दूसरी शंका–हमारे तो राजा नाम के हैं, असली राजा तो विलायत के बनिये महाजन हैं।

तीसरी शंका–बनिये धन कमाना जानते हैं, राज्य करना क्या जानें!

भगत–लोग तुम्हें शिक्षा देते हैं कि अदालत में मत जाओ, पंचायत में मुकदमे ले जाओ; लेकिन ऐसे पंच कहाँ हैं, जो सच्चा न्याय करें, दूध का दूध और पानी का पानी कर दें? यहाँ मुँह देखी बातें होंगी। जिनका दबाव है, उनकी जीत होगी। जिनका कुछ दबाव नहीं है, वे बेचारे मारे जाएँगे। अदालतों में सब कारवाई कानून पर होती है, वहाँ छोटे-बड़े सब बराबर हैं, शेर-बकरी सब एक घाट पानी पीते हैं।

एक शंका–अदालतों का न्याय कहने ही को है; जिनके पास बने हुए गवाह और दाँवपेंच खेले हुए वकील होते हैं, उसी की जीत होती है, झूठे-सच्चे की परख कौन करता है? हाँ, हैरानी अलबत्ता होती है।

भगत–कहा जाता है कि विदेशी चीजों का व्यवहार मत करो। यह गरीबों के साथ घोर अन्याय है। हमको बाजार में जो चीज सस्ती और अच्छी मिले, वह लेनी चाहिए। चाहे, स्वदेशी हो या विदेशी। हमारा पैसा सेंत में नहीं आता कि उसे रद्दी-भद्दी स्वदेशी चीजों पर फेकें।

एक शंका–अपने देश में तो रहता है, दूसरों के हाथ में नहीं जाता।

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