कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
इन दोनों सज्जनों ने गाँव को दो विरोधी दलों में विभक्त कर दिया था। एक दल की भंग-बूटी चौधरी के द्वार पर छनती, तो दूसरे दल के चरस गाँजे के दम भगत के द्वार पर लगते थे। स्त्रियों और बालकों के भी दो दल हो गए थे। यहाँ तक की दोनों सज्जनों के सामाजिक और धार्मिक विचारों में भी विभाजन रेखा खिंची हुई थी। चौधरी कपड़े पहने सत्तू खा लेते और भगत को ढोंगी कहते। भगत बिना कपड़े उतारे पानी भी न पीते, और चौधरी को भ्रष्ट बतलाते। भगत सनातन धर्मी बने, तो चौधरी ने आर्यसमाज का आश्रय लिया। जिस बजाज, पंसारी या कुँजड़े से चौधरी सौदा लेते, उसकी ओर भगत जी ताकना भी पाप समझते थे। और भगतजी के हलवाई की मिठाइयाँ, उनके ग्वाले का दूध और तेली का तेल चौधरी के लिए त्याज्य थे। यहाँ तक कि उनके आरोग्य के सिद्धान्तों में भी भिन्नता थी। भगतजी वैद्यक के कायल थे, चौधरी यूनानी प्रथा के माननेवाले। दोनों चाहे रोग से मर जाते, पर अपने सिद्धान्तों को न तोड़ते।
जब देश में राजनैतिक आन्दोलन शुरू हुआ, तो उसकी भनक उस गाँव में आ पहुँची। चौधरी ने आन्दोलन का पक्ष लिया, भगत उसके विपक्षी हो गए। एक सज्जन ने आकर गाँव में किसान-सभा खोली। चौधरी उसमें शरीक हुए, भगत अलग रहे। जागृति बढ़ी, और स्वराज्य की चर्चा होने लगी। चौधरी स्वराज्यवादी हो गए, भगत ने राजभक्ति का पक्ष लिया। चौधरी का घर स्वराज्य-वादियों का अड्डा हो गया, भगत का घर राजभक्तों का क्लब बन गया।
चौधरी जनता में स्वराज्यवाद का प्रचार करने लगे–मित्रो, स्वराज्य का अर्थ है अपना राज्य। अपने देश में अपना राज्य हो, तो वह अच्छा है कि किसी दूसरे का राज्य?
जनता ने कहा–अपना राज्य हो, वह अच्छा है।
चौधरी–तो वह स्वराज्य कैसे मिलेगा?आत्मबल से, पुरुषार्थ से, मेल से। एक दूसरे से द्वेष करना छोड़ दो। अपने झगड़े आप मिलकर निपटा लो।
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