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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


एक दिन वह सैर करने जा रहे थे। कि रास्ते में अध्यापक अमरनाथ से मुलाकात हो गई। वह महाशय अब म्युनिसिपल-बोर्ड के मंत्री हो गए थे, और आजकल इस दुविधा में पड़े हुए थे कि शहर में मादक वस्तुओं को बेचने का ठेका लूँ या न लूँ। लाभ बहुत था पर बदनामी भी कम न थी। अभी तक कुछ निश्चय न कर सके थे। इन्हें देखकर बोले–कहिए लालाजी, मिजाज अच्छा है न! आपके विवाह के विषय में क्या हुआ?

गोपीनाथ ने दृढ़ता से कहा–मेरा इरादा विवाह करने का नहीं है।

अमरनाथ–ऐसी भूल न करना। तुम अभी नवयुवक हो, तुम्हें संसार का कुछ अनुभव नहीं। मैंने ऐसी कितनी मिशाले देखी हैं, जहाँ अविवाहित रहने से लाभ के बदले हानि ही हुई है। विवाह मनुष्य को सुमार्ग पर रखने का सबसे उत्तम साधन है, जो अब तक मनुष्य ने आविष्कृत किया है। उस व्रत से क्या फायदा, जिसका परिणाम छिछोरापन हो?

गोपीनाथ ने प्रत्युत्तर दिया–आपने मादक वस्तुओं के ठेके के विषय में क्या निश्चय किया?

अमरनाथ–अभी तक कुछ नहीं। जी हिचकता है। कुछ-न-कुछ बदनामी तो होगी ही।

गोपीनाथ–एक अध्यापक के लिए मैं इस पेशे को अपमान समझता हूँ।

अमरनाथ–कोई पेशा खराब नहीं, अगर ईमानदारी से किया जाए।

गोपीनाथ–यहाँ मेरा आपसे मतभेद है। कितने ऐसे व्यवसाय हैं, जिन्हें एक सुशिक्षित व्यक्ति कभी स्वीकार नहीं कर सकता। मादक वस्तुओं का ठेका उनमें से एक है।

गोपीनाथ ने आकर अपने पिता से कहा–मैं कदापि विवाह न करूँगा। आप लोग मुझे विवश न करें, वर्ना पछताइएगा।

अमरनाथ ने उसी दिन ठेके के लिए प्रर्थनापत्र भेज दिया और वह स्वीकृति भी हो गया।

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