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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588
आईएसबीएन :978-1-61301-115

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


अमरनाथ–राष्ट्रीय संस्थाओं में सम्मिलित होने का समय अभी तुम्हारे लिए नहीं आया। अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? जब तक विचारों में गांभीर्य और सिद्धान्तों पर दृढ़ विश्वास न आ जाय, उस समय तक केवल क्षणिक आवेशों के वशवर्ती होकर किसी काम में कूद पड़ना अच्छी बात नहीं। राष्ट्रीय सेवा बड़े उत्तरदायित्व का काम है।

गोपीनाथ ने निश्चय कर लिया, मैं जाति-सेवा में जीवनक्षेप करूँगा। अमरनाथ ने भी यही फैसला किया कि मैं म्युनिसिपैलिटी में अवश्य जाऊँगा। दोनों का परस्परविरोध उन्हें कर्म क्षेत्र की ओर खींच ले गया। गोपीनाथ की साख पहले ही जम गई थी। घर के धनी थे। शक्कर और सोने-चाँदी की दलाली होती थी। व्यापारियों में उनके पिता का बड़ा मान था। गोपीनाथ के दो बड़े भाई थे। वे भी दलाली करते थे। परस्पर मेल था, धन था, संतानें थी। अगर न थी, तो शिक्षा और शिक्षित समुदाए में गणना। वह बात गोपीनाथ की बदौलत प्राप्त हो गई। इसलिए उनकी स्वच्छंदता पर किसी ने आपत्ति नहीं की, किसी ने उन्हें धनोपार्जन के लिए मजबूर नहीं किया। अतएव गोपीनाथ निश्चित और निर्द्वंद्व होकर रष्ट्रीय सेवा में निरत हो गए। कहीं किसी अनाथलय के लिए चंदा जमा करते कहीं किसी कन्या-पाठाशाला के लिए भिक्षा माँगते फिरते। नगर की काँग्रेस-कमेटी ने उन्हें अपना मंत्री नियुक्त किया। उस समय तक कांग्रेस ने कर्म-क्षेत्र में पदार्पण नहीं किया था। उनकी कार्यशीलता ने इस जीर्ण संस्था का मानो पुनरुद्धार कर दिया। वह प्रातः से संध्या और बहुधा पहर रात तक इन्हीं कामों में लिप्त रहते थे। चंदे का रजिस्टर हाथ में लिये उन्हें नित्यप्रति साँझ-सबेरे अमीरों और रईसों के द्वार पर खड़े देखना एक साधारण दृश्य था। धीरे-धीरे कितने ही युवक उनके भक्त हो गए। लोग कहते, कितना निःस्वार्थ, कितना आदर्शवादी, त्यागी, जाति-सेवक है। कौन सुबह से शाम तक निःस्वार्थ भाव से केवल जनता का उपकार करने के लिए यों दौड़-धूप करेगा?

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