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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


दाऊद–एक गरीब ईसाई। मुसीबत में फँस गया हूँ। अब आप ही शरण दें, तो मेरे प्राण बच सकते हैं।

अरब–खुदा-पाक मदद करेगा। तुझ पर क्या मुसीबत पड़ी हुई है? दाऊद-डरता हूँ, कहीं कह दूँ, तो आप भी मेरे खून के प्यासे न हो जाएँ।

अरब–जब तू मेरी शरण में आ गया, तो तुझे मुझसे कोई शंका न होनी चाहिए। हम मुसलमान हैं, जिसे एक बार अपनी शरण में ले लेते हैं, उसकी जिंदगी-भर रक्षा करते हैं।

दाऊद–मैंने एक मुसलमान युवक की हत्या कर डाली है।

वृद्ध अरब का मुख क्रोध से विकृत हो गया, बोला–उसका नाम?

दाऊद–उसका नाम जमाल था।

अरब सिर पकड़कर वहीं बैठ गया। उसकी आँखें सुर्ख हो गईं गर्दन की नसें तन गई; नथुनें फड़कने लगे। ऐसा मालूम होता था कि उसके मन में भीषण द्वन्द्व हो रहा है, और वह समस्त विचार-शक्ति से अपने मनोभावों को दबा रहा है। दो-तीन मिनट तक वह इसी उग्र अवस्था में धरती की ओर ताकता रहा। अंत में अवरुद्ध स्वर में बोला–नहीं, नहीं, शरणागत की रक्षा करनी पड़ेगी। आह! जालिम! तू जानता है, मैं कौन हूँ? मैं उसी युवक का अभागा पिता हूँ, जिसकी आज तूने इतनी निर्दयता से हत्या की है! तू जानता है तूने मुझ पर कितना बड़ा अत्याचार किया है। मेरा चिराग गुल कर दिया! आह, जमाल मेरा इकलौता बेटा था! मेरी सारी अभिलाषाएँ उसी पर निर्भर थीं। वही मेरी आँखों का उजाला, मुझ अंधे का सहारा, मेरे जीवन का आधार, मेरे जर्जर शरीर का प्राण था।

अभी-अभी उसे कब्र की गोद में लिटा कर आया हूँ। आह, मेरा शेर आज खाक के नीचे सो रहा है, ऐसा दिलेर, ऐसा सजीला जवान मेरी कौम में दूसरा न था। जालिम, तुझे उस पर तलवार चलाते जरा भी दया न आयी। तेरा पत्थर का कलेजा जरा भी न पसीजा! तू जानता है, मुझे इस वक्त तुझ पर कितना गुस्सा आ रहा है? मेरा जी चाहता है अपने दोनों हाथों से तेरी गर्दन पकड़कर इस तरह दबाऊँ कि तेरी जबान बाहर निकल आए, तेरी आँखें कौड़ियों की तरह बाहर निकल पड़ें। पर नहीं तूने मेरी शरण ली है, कर्तव्य मेरे हाथों को बाँधे हुए है, क्योंकि हमारे रसूल-पाक ने हिदायत की है कि जो अपनी पनाह में आये, उस पर हाथ न उठाओ। मैं नहीं चाहता कि नबी के हुक्म को तोड़कर दुनिया के साथ अपनी आकबत भी बिगाड़ लूँ। दुनियाँ तूने बिगाड़ी, दीन अपने हाथों बिगाड़ू? नहीं सब्र करना मुश्किल है; पर सब्र करूँगा ताकि नबी के सामने आँखें नीची न करनी पड़ें। आ, घर में आ; तेरा पीछा करने वाले वह दौड़े आ रहे हैं। तुझे देख लेगें, तो फिर सारी मिन्नत-समाजत तेरी जान न बचा सकेगी। तू जानता है कि अरब लोग खून कभी माफ नहीं करते।

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