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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584
आईएसबीएन :978-1-61301-113

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


घर आकर मैंने अम्माँजी से यह बात कही। मुझे ऐसा जान पड़ा कि वह यह बात सुनकर बहुत चिंतित हो गई।

इसके बाद दो-तीन दिन तक कजाकी न दिखलाई दिया। मैं भी अब उसे कुछ-कुछ भूलने लगा। बच्चे पहले जितना प्रेम करते हैं, बाद को उतने ही निष्ठुर भी हो जाते हैं; जिस खिलौने पर प्राण देते हैं, उसी को दो-चार दिन के बाद पटककर फोड़ भी डालते हैं।

दस-बारह दिन और बीत गए। दोपहर का समय था। बाबूजी खाना खा रहे थे। मैं मुन्नू के पैरों में पीतल की पैजनियाँ बाँध रहा था। एक औरत घूँघट निकाले हुए आयी, और आँगन में खड़ी हो गई। उसके कपड़े फटे हुए और मैले थे, पर गोरी सुन्दर स्त्री थी। उसने मुझसे पूछा–भैया बाबूजी कहाँ हैं?

मैंने उसके पास जाकर उसका मुँह देखते हुए कहा–तुम कौन हो–क्या बेचती हो?

औरत–कुछ बेचती नहीं हूँ तुम्हारे लिए ये कमलगट्टे लायी हूँ भैया। तुम्हें कमलगट्टे बहुत अच्छे लगते है न?

मैंने उसके हाथों से लटकती हुई पोटली को उत्सुक नेत्रों से देखकर पूछा–कहाँ से लायी हो, देखें!

औरत–तुम्हारे हरकारे ने भेजा है भैया।

मैंने उछलकर पूछा–कजाकी ने?

औरत ने सिर हिलाकर ‘हाँ’ कहा, और पोटली खोलने लगी। इतने में अम्माँजी भी रसोई से निकल आयीं। उसने अम्माँ के पैरों को स्पर्श किया। अम्माँ ने पूछा–तू कजाकी की घरवाली है?

औरत ने सिर झुका लिया।

अम्माँ–आजकल कजाकी क्या करता है?

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