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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582
आईएसबीएन :978-1-61301-112

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


बुद्धू–नहीं बाबूजी, मैं हर तरह से आपका काम करने को तैयार हूँ इसने पाँच सौ कहे, आप कुछ कम कर दीजिए। हाँ जोखिम का ध्यान रखिएगा।

बुढ़िया–तू जा के सोता क्यों नहीं? इन्हें रुपये प्यारे हैं तो क्या मुझे अपनी जान प्यारी नहीं है। कल को लहू थूकने लगेगा तो कुछ बनाये न बनेगी, बाल-बच्चों को किस पर छोड़ेगा ? है घर में कुछ?

डाक्टर साहब ने संकोच करते हुए ढाई सौ रुपये कहे। बुद्धू राजी हो चला गया, मामला तय हुआ, डाक्टर साहब उसे साथ लेकर घर की ओर चले, उन्हें ऐसी आत्मिक प्रसन्नता कभी न मिली थी। हारा हुआ मुकदमा जीत कर अदालत से लौटने वाला मुकदमेबाज भी इतना प्रसन्न न होगा। लपके चले जाते थे। बुद्धू से बार-बार तेज चलने को कहते। घर पहुँचे तो जगिया को बिलकुल मरने के निकट पाया। जान पड़ता था यही साँसें अंतिम साँस है। उनकी माँ और स्त्री दोनों आँसू भरे निराश बैठी थीं। बुद्धू को दोनों ने विनम्र दृष्टि से देखा। डाक्टर साहब के आँसू भी न रुक सके। जगिया की ओर झुके तो आँसू की बूँदें उसके मुरझाये हुए पीले मुँह पर टपक पड़ीं। स्थिति ने बुद्धू को सजग कर दिया, बुढ़िया के देह पर हाथ रखते हुए बोला–बाबू जी, अब मेरा किया कुछ नहीं हो सकता, यह दम तोड़ रही है।

डाक्टर साहब ने गिड़गिड़ा कर कहा–नहीं चौधरी, ईश्वर के नाम पर अपना मंत्र चलाओ, इसकी जान बच गयी तो सदा के लिए मैं तुम्हारा गुलाम बना रहूँगा।

बुद्धू–आप मुझे जान-बूझ कर जहर खाने को कहते हैं। मुझे मालूम न था कि मूठ देवता इस बखत इतने गरम हैं। वह मेरे मन में बैठे कह रहे हैं, तुमने हमारा शिकार छीना तो हम तुम्हें निगल जायेंगे।

डाक्टर–देवता को किसी तरह राजी कर लो।

बुद्धू–राजी करना बड़ा कठिन है, पाँच सौ रुपये दीजिए तो इसकी जान बचे। उतारने के लिए बड़े-बड़े जतन करने पड़ेंगे।

डाक्टर–देवता को किसी तरह राजी कर लो।

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