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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582
आईएसबीएन :978-1-61301-112

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


जागेश्वर ने अपील करने का निश्चय किया। रुपये न थे, गाड़ी-बैल बेच डाले। अपील हुई। महीनों मुकदमा चला। बेचारा सुबह से शाम कचहरी के अमलों और वकीलों की खुशामद किया करता, रुपये भी उठ गये, महाजनों से ऋण लिया। बारे अबकी उसकी डिग्री हो गयी। पाँच सौ का बोझ सिर पर हो गया था, पर अब जीत ने आँसू पोंछ दिये।

विश्वेश्वर ने हाईकोर्ट में अपील की। जागेश्वर को अब कहीं से रुपये न मिले। विवश होकर अपने हिस्से की जमीन रेहन रखी। फिर घर बेचने की नौबत आयी। यहाँ तक की स्त्रियों के गहने भी बिक गये। अन्त में हाईकोर्ट से भी उसकी जीत हो गयी। आनंदोत्सव में बची-खुची पूँजी भी निकल गयी। एक हजार पर पानी फिर गया। हाँ, संतोष यही था कि ये पाँचों बीघे मिल गए। तपेश्वरी क्या इतनी निर्दयी हो जाएगी कि थाली मेरे सामने से खींच लेगी।

लेकिन खेतों पर अपना नाम चढ़ते ही तपेश्वरी की नीयत बदली। उसने एक दिन गाँव में आकर पूछ-ताछ की तो मालूम हुआ कि पाँचों बीघे १०० रु० में उठ सकते हैं। लगान केवल २५ रु० था, ७५ रु० साल का नफा था। इस रकम ने उसे विचलित कर दिया। उसने असामियों को बुला कर उनके साथ बंदोबस्त कर दिया। जागेश्वरराय हाथ मलता रह गया। आखिर उससे न रहा गया। बोला–फूफी जी, आपने जमीन तो दूसरों को दे दी, अब मैं कहाँ जाऊँ।

तपेश्वरी–बेटा, पहले अपने घर में दिया जला कर तब मस्जिद में जलाते हैं। इतनी जगह मिल गयी, तो मैके से नाता हो गया, नहीं तो कौन पूछता।

जागे०–मैं जो उजड़ गया!

तपेश्वरी–जिस लगान पर लोग ले रहे हैं, उससे दो-चार रुपये कम करके तुम्हीं क्यों नहीं ले लेते?

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