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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582
आईएसबीएन :978-1-61301-112

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


मुंशी जी ने उसकी ओर सशंक नेत्रों से देख कर कहा–इसका क्या मतलब?

अताई–इसका मतलब यह है, कि यह दोनों चीजें मेरी हैं।

मुंशी जी ने दुस्साहसपूर्ण भाव से कहा–क्या तुम्हारे ख्याल में रेशमी अचकन और साफा तुम्हारे सिवाय और किसी के पास हो ही नहीं सकता।

अताई–हो क्यों नहीं सकता। अल्लाह ने जिसे दिया है, वह पहनता है। एक से एक पड़े हुए हैं। मैं किस गिनती में हूँ। लेकिन यह दोनों चीजें मेरी हैं। अगर ऐसी अचकन शहर में किसी के पास निकल आये तो जो जरीबाना कहिए दूँ। मैंने इसकी सिलाई दस रुपये दिये हैं। ऐसा कोई कारीगर ही शहर में नहीं। ऐसी तराश करता है कि हाथ चूम लें। साफे पर भी मेरा निशान बना हुआ है, लाइए दिखा दूँ। मैं आपसे महज इतना पूछना चाहता हूँ कि आपने यह चीजें कहाँ पायीं।

मुंशी जी समझ गये कि अब अधिक तर्क-वितर्क का स्थान नहीं है कहीं बात बढ़ जाय तो बेइज्जती हो। कूटनीति से काम न चलेगा। नम्रता से बोले–भाई, यह न पूछो, यहाँ इन बातों के कहने का मौका नहीं। हमारी और तुम्हारी इज्जत एक है। बस इतना ही समझ लो कि इसी तरह दुनिया का काम चलता है। अगर ऐसे कपड़े बनवाने बैठता तो इस वक्त सैकड़ों के माथे जाती। यहाँ तो किसी तरह नवेद में शरीर होना था। तुम्हारे कपड़े खराब न होंगे, इसका जिम्मा मेरा। मैं इनकी एहतियात अपने कपड़ों से भी ज्यादा करता हूँ।

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