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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582
आईएसबीएन :978-1-61301-112

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


बनिये ने कहा–अगर मेरे बाँट रत्ती भर कर कम निकलें तो हजार रुपये डाँड़ दूँ।

मौलवी साहब ने कहा–तो कमबख्त, टाँकी मारता होगा।

मुंशी जी बोले–टाँकी मार देता है, यही बात है।

अहीर ने कहा–दोहरे बाँट रखे हैं। दिखाने के और, बेचने के और। इसके घर की पुलिस तलाशी ले।

बनिये ने फिर प्रतिवाद किया, पकड़नेवालों ने फिर आक्रमण किया, इसी तरह कोई आध घंटा तक तकरार होती रही। मेरे समझ में न आता था कि क्या करूँ। बनिये को छुड़ाने के लिए जोर दूँ या जाने दूँ। बनिये से सभी जले हुए मालूम होते थे। खलील को देखा तो गायब? न जाने कब उठकर चला गया? बनिया किसी तरह न दबता था, यहाँ तक कि थाने जाने से भी न डरता था।

ये लोग थाने जाना ही नहीं चाहते थे कि बौड़म सामने आता दिखायी दिया। उसके एक हाथ में एक टोकरा था, दूसरे हाथ में एक टोकरी और पीछे एक ७-८ बरस का लड़का। उसने आते ही मौलवी साहब से कहा–यह कटोरा आप ही का है काज़ी जी?

मौलवी–(चौंककर) हाँ है तो, फिर? तुम मेरे घर से इसे क्यों लाये?

बौड़म–इसलिए कि कटोरे में वही आध पाव घी है जिसके विषय में आप कहते हैं कि बनिये ने कम तौला। घी वही है। वजन वही है। बेईमानी गरीब बनिये की नहीं है, बल्कि काज़ी हाजी मौलवी जहूर अहमद की।

मौलवी–तुम अपना बौड़मपना यहाँ न दिखाना नहीं तो मैं किसी से डरने वाला नहीं हूँ। तुम लखपती होगे तो अपने घर के होगे। तुम्हें क्या मजाल था मेरे घर में जाने का!

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