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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582
आईएसबीएन :978-1-61301-112

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


अलगू–बहुत कहा, लेकिन वहाँ कौन किसी की सुनता था? सभी लोग लौट आते थे, मैं भी लौट आया।

मुंशी–चरस लाये?

अलगू–वहाँ भी यही हाल था।

मुंशी–तुम मेरे नौकर हो या स्वराज्य वालों के?

अलगू–मुँह में कालिख लगवाने के लिए थोड़े ही नौकर हूँ?

मुंशी–तो क्या वहाँ बदमाश लोग मुँह में कालिख भी लगा रहे हैं?

अलगू–देखा तो नहीं, लेकिन सब यही कहते थे।

मुंशी–अच्छी बात है, मैं खुद जाता हूँ, देखूँ किसकी मजाल है जो रोके। एक-एक को लाल कर दिखा दूँगा, यह सरकार का राज है, कोई बदमिली नहीं है। वहाँ कोई पुलिस का सिपाही नहीं था?

अलगू–थानेदार साहब आप ही खड़े सबसे कहते थे जिसका जी चाहे शराब ले या पिये लेकिन लौट आते थे, उनकी कोई न सुनता था।

मुंशी–थानेदार मेरे दोस्त हैं, चलो जी ईदू चलते हो। रामबली, बेचन, झिनकू सब चलो। एक-एक बोतल ले लो, देखें कौन रोकता है। कल ही तो मजा चखा दूँगा।

मुंशी जी अपने चारों साथियों के साथ शराबखाने की गली के सामने पहुँचे तो वहाँ बहुत भीड़ थी। बीच में दो सौम्य मूर्तियाँ खड़ी थीं। एक मौलाना जामिन थे जो शहर के मशहूर मुजतहिद थे, दूसरे स्वामी घनानन्द थे जो वहाँ की सेवासमिति के संस्थापक और प्रजा के बड़े हितचिंतक थे। उनके सम्मुख ही थानेदार साहब कई कानस्टेबलों के साथ खड़े थे। मुंशी जी और उनके साथियों को देखने ही थानेदार साहब प्रसन्न होकर बोले–आइए मुख्तार साहब, क्या आज आप ही को तकलीफ करनी पड़ी? यह चारों आप ही के हमराह हैं न?

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