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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘मदन! तुमने इसका डॉक्टर साहब से परिचय नहीं कराया?’’

‘‘तो क्या लैसली ने घर पर जाकर बताया नहीं? मेरा विचार था कि उसने आपसे और उनसे इसके आने के विषय में बता दिया होगा। फिर भी डॉक्टर साहब ने इससे बात करने की इच्छा व्यक्त नहीं की, तो मैं समझता था कि उनको इसका परिचय प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।’’

‘‘लैसली ने तो कुछ भी नहीं बताया। वह तो यहां से जाकर भीतर कमरा बन्द करके बैठ गई है। तीन दिन से निरन्तर वह ऐसा ही कर रही है। हम समझते हैं वह अपने मन में बहुत ही दुःखी है, इस कारण ऐसा करती है।’’

‘‘हां, दुःख तो उसको होना ही चाहिए। मुझमें अब उसे कोई आकर्षण दिखाई नहीं देता, इससे उसको दुःख तो होना ही चाहिए।’’

नीला ने इसका भी उत्तर नहीं दिया। वह महेश्वरी के सम्मुख लैसली के व्यवहार की आलोचना करना नहीं चाहती थी। उसने कहा, ‘‘डॉक्टर का कथन है कि एक मास में तुमको हॉस्पिटल से अवकाश मिल जायेगा। डॉक्टर साहब ने इस दुर्घटना की सूचना भारत सरकार और मिशिगन यूनिवर्सिटी को भेज दी है। नवीन वर्ष की छात्र वृत्ति अभी नहीं आई। कदाचित यह सूचना मिलने के उपरान्त वह छात्रवृत्ति न भी आए।’’

यह सुन मदन चुप रहा। नीला ने मदन को मौन देख महेश्वरी से पूछा, ‘‘कहां ठहरी हुई हो?’’

‘‘मैं मिनर्वा होटल में ठहरी हूं और कल ही मिशिगन पहुंची थी।’’

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