लोगों की राय

उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

88 पाठक हैं

इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


इन पत्रों का भी कुछ उत्तर नहीं आया। फकीरचन्द को बहुत परेशानी हुई। महेश्वरी समझती थी कि कोई दुर्घटना हो गई है जो उससे छिपाई जा रही है। सबसे विचित्र बात तो यह थी कि डॉक्टर साहनी ने भी कोई पत्र नहीं लिखा। दिल्ली में इससे बहुत चिन्ता अनुभव की जाने लगी। महेश्वरी ने प्रस्ताव रख दिया, ‘‘पिताजी! मैं अमेरिका जाना चाहती हूं?’’

‘‘किसलिए?’’

‘‘अपने आप पूर्ण परिस्थिति का ज्ञान प्राप्त करने के लिए।’’

महेश्वरी की परीक्षा हो चुकी थी और वह उसमें उत्तीर्ण हो गई थी। धन का तो अभाव नहीं था, परन्तु अमेरिका में रुपये ले जाने पर प्रतिबन्ध था। भ्रमणार्थ जाने वालों के लिए पचहत्तर रुपये से अधिक ले जाने पर प्रतिबन्ध था और पचहत्तर रुपये तो बहुत कंजूसी से रहने पर भी एक-दो दिन से अधिक नहीं चल सकते थे।

इस कारण फकीरचन्द ने अपनी कठिनाई व्यक्त कर दी। महेश्वरी का कहना था, ‘‘मैं जानती हूं और इसका उपाय भी जानती हूं। आप मुझे यदि स्वीकृति दें, तो तो मैं इसका प्रबन्ध कर सकती हूं।’’

‘‘कैसे?’’

‘‘मेरी एक सहेली श्रीमती गुरनाम कौर, कलकत्ता में एक बहुत बड़े जूट के सौदागर सरदार विचित्रसिंह की लड़की है। उसके पिता प्रतिवर्ष दो-तीन करोड़ रुपये का मूल्य का जूट विदेश भेजते रहते हैं। उनको कहने पर वे वहां पर खर्च करने के लिए पर्याप्त धन की व्याख्या कर सकते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book