लोगों की राय

उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573
आईएसबीएन :9781613011096

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

88 पाठक हैं

इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘आपसे मैं कुछ छिपाना नहीं चाहती। मेरा यह प्रथम अनुभव नहीं है। परन्तु उस समय जो कुछ हुआ था, वह मेरे साथ बलात्कार ही कहा जा सकता था। मैं अपनी श्रेणी के दो लड़कों में, एक दिन एक एकान्त स्थान पर फंस गई थी। उस घटना का मुझे बहुत खेद रहा और मैंने उसी दिन से निश्चय कर लिया था कि मैं एकान्त में किसी के साथ भ्रमण नहीं करूंगी।’’

‘‘किन्तु मेरे साथ तो तुमने एकान्त में बैठने में कभी संकोच नहीं किया?’’

‘‘वह इसलिए कि आपके प्रथम दर्शन में ही अपने मन में निश्चय कर लिया था कि आपके साथ विवाह करूंगी। मैं आपको इसके लिए तैयार कर रही थी। कल रात मेरी समझ में यहीं आया कि आप अब तैयार हो गये हैं।

‘‘मैं नहीं समझ सका कि मैंने यह क्यों किया। मैं कुछ विवश हो गया था।’’

‘‘तो क्या अब आप पश्चात्ताप कर रहे हैं?’’

‘‘मुझे किसी अन्य का विचार आ रहा है, जो नई दिल्ली में बैठी मेरे भारत लौटले की प्रतीक्षा कर रही होगी।’’

‘‘बहुत प्रेम है आपका उसके साथ?’’

‘‘प्रेम का अर्थ मैं नहीं समझ सका। जो कुछ विगत रात्रि हुआ, वह कामाभिभूत होकर ही हुआ था। फिर भी मैं तुमसे लड़ना नहीं चाहता। कुछ बात है जो मैं तुममें पसन्द करता हूं और उसकोमन से निकाल नहीं सकता। परन्तु उस दिल्ली वाली को मैं विवाह का वचन दे चुका हूं। वह वचन भी भंग करने को जी नहीं चाहता।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book