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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘वह अभी तक तो आप और मुझमें बहुत निष्ठा रखता है।’’
‘‘ये सब दिखावे की बातें हैं। आज विवाह के विषय में ही बात हुई तो कहने लगा–तलाक देने में क्या हानि है? दुराचारिणी स्त्री को तो छोड़ देना ही ठीक है।’’
‘‘ठीक ही तो कहा है उसने। छोड़ने को तलाक नहीं कहते। तलाक एक रस्म है, जिससे पत्नी अथवा पति दूसरा विवाह कर सकें। छोड़ना तो अस्थायी होता है। और छोड़ी हुई वस्तु ग्रहण भी की जा सकती है।’’
‘‘उसका अर्थ तलाक देने से ही है।’’
‘‘मुझको उस पर विश्वास है। उससे अधिक उसकी पत्नी के सौन्दर्य पर। वह इतनी सुन्दर है कि कोई भी पति उसको छोड़ नहीं सकता।’’
‘‘यह सब तुम जानो। इस पर भी सौन्दर्य एक क्षण-भंगुर वस्तु है। यह क्षीण भी हो सकता है। परन्तु परस्पर श्रद्धा, निष्ठा और विश्वास यदि इस क्षण-भंगुर वस्तु का आधार पा जायें, तो वह इसके साथ ही लुप्त हो सकती है।’’
‘‘भविष्य की चिन्ता छोड़िये। अब यह बताइये कि आगे क्या होगा? वह और पढ़ने के लिये लखनऊ जायेगा अथवा नहीं?’’
‘‘जायेगा। यद्यपि मैं उसकी शिक्षा को पसन्द नहीं करता, तो भी जिस ओर वह चल पड़ा है, उस पथ पर भी रास्ते में खड़े रहना तो ठीक नहीं। लौट वह सकता नहीं। इस कारण उसको अपनी मंजिल पूरी कर ही लेनी चाहिये।’’
‘‘खर्चे का क्या होगा?’’
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