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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


रजनी मन में विचार कर रही थी कि कदाचित् वह विष्णु को उसके घर वालों से अधिक जानती है। इस पर भी वह चुप कर रही। यही उसने उचित समझा।

इन्द्रनारायण की माँ और कुछ अन्य स्त्रियाँ लड़की को उसकी माँ के घर पर देखने गयीं। रजनी भी उनके साथ थी। लड़की को श्रृंगार कर वस्त्राभूषण पहना जाने के लिये तैयार किया हुआ था। वह घूँघट काढ़े बैठी थी। रजनी की उत्कट इच्छा हुई कि वह इन्द्र की बहू का मुख देखे, परन्तु सब स्त्रियों के बीच में वह घूँघट न उठाने का हठ कर रही थी। जब रजनी उसके पास बैठ, उसकी पीठ पर हाथ रख, घूँघट उठाने लगी तो लड़की ने आँचल को जोर से पकड़ लिया।

‘‘क्यों? किससे डरती हो?’’ रजनी ने पूछ लिया।

‘‘तुमसे।’’ लड़की ने धीरे से कह दिया।

‘‘अच्छा! भला क्यों?’’

‘‘मैं नहीं जानती तुम कौन हो?’’

‘‘तुम्हारी तरह एक लड़की हूँ।’’

‘‘जाँच करनी पड़ेगी।’’

‘‘परन्तु तुमको संदेह क्यों हुआ?’’

‘‘तुम एक लड़की को निर्लज्ज बनाना चाहती हो न?’’

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