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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566
आईएसबीएन :9781613011065

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘क्यों?’’

‘‘यह मेरा रहस्य है।’’

इस पर तीनों हँसने लगे। रजनी ने कह दिया, मैंने एक पत्र आपकी माताजी को लिखा है कि यदि राधा इन्द्र भैया की ससुराल जायेगी तो राधा की बड़ी बहन भी साथ जायेगी। परन्तु उसका उत्तर नहीं आया।’’

‘‘तब तो ठीक है। तुम जानो और माताजी जानें।’’

‘‘पत्र नहीं आया तो मैं स्वयमेव जाऊँगी।’’

‘‘जबरदस्ती ही?’’

‘‘हाँ, माताजी के बेटे की बहन भी तो जबरदस्ती ही बनी हूँ। अब माताजी की पुत्री भी जबरदस्ती बनना होगा।’’

‘‘माँ से पूछा है क्या?’’

‘‘आज रात पूछूँगी। पहले अवकाश ही कहाँ था?’’

‘‘एक साधारण-सी बात को आप लोग कितना महत्त्व प्रदान कर रहे हैं।’’

‘‘प्रत्येक वस्तु का मूल्य अपना-अपना है न।’’

इस समय बैरा आया और चाय के लिये कह गया। उसने बताया, ‘‘रायसाहब भी आ गये हैं और चाहते हैं कि जल्दी आ जाइये, क्योंकि उन्होंने आज किसी मीटिंग में जाना है।’’

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