उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘आई आलसो थिंक सो।’’ नवाबजादे ने कह दिया।
इसके पश्चात् इरीन ने इन्द्रनारायण का परिचय करा दिया, ‘‘ये एक ‘ऑर्थोडॉक्स’ हिन्दू परिवार के रुक्न हैं, मेरे सहपाठी हैं। श्रेणी में साधु स्वभाव के माने जाते थे।’’
जब अनवर हुसैन इन्द्र का स्वागत कर रहा था, विष्णुस्वरूप रजनी से बातें करता हुआ कोठी में टहलने लगा। इरीन अपने पिता के संबंधियों से बातें करती हुई दूर चली गई। इस समय नवाब, इरीन से श्वशुर वहाँ आये तो अनवर हुसैन ने अपने पिता को इन्द्रनारायण का परिचय करा दिया। उसने कहा, ‘‘अब्बाजान! ये बेगम के सहपाठी हैं। नाम...’’ नाम वह भूल गया था। इस पर इन्द्रनारायण बोल उठा, ‘‘नाम इन्द्रनारायण है।’’
‘‘अब क्या करते हो बरखुरदार?’’
‘‘मैं मेडिकल कॉलेज में पढ़ता हूँ।’’
‘‘बहुत खूब! तो तुम भी लाइसेंसदार हत्यारे बनने वाले हो?’’
इन्द्रनारायण समझा नहीं, इस कारण नवाब का मुख देखता रहा। अनवर इन दोनों को बातें करते छोड़, इरीन की सहेली स्मिथ से बातें करने लगा।
इन्द्रनारायण को विस्मय में मुख देखते हुए पा, नवाब साहब अपनी पहली बीवी, अनवर की माँ का किस्सा बताने लगे। वे बोले, ‘‘अनवर पैदा होने वाला था। गाँव में सबके बच्चे होते थे। मगर मेरी सास, अनवर की नानी, ने कह दिया कि उसकी लड़की को लखनऊ के हस्पताल में भरती करा दिया जाये। मैं उस समय नातजुर्बेकार, उन्नीस साल का पट्ठा था। नये-नये विलायती रिवाज चले थे। मैं उन पर फिदा था। यह खयाल कर कि कहीं मेरी ससुराल वाले यह न समझें कि उनकी लड़की को हमारी कंजूसी की वजह से किसी किस्म की तकलीफ हुई है, मेरे अब्बाजान भी राजी हो गये। बेगम को बलरामपुर हस्पताल में एक प्राइवेट कमरा लेकर रखा। बच्चा सही-सलामत हो गया। तीसरे दिन बेगम को बुखार हो आया। यह तसरीख की गई कि नारा का एक छोटा-सा टुकड़ा अन्दर ही रह गया है। उसके लिए ऑपरेशन की जरूरत है। मैं वहाँ हाजिर था और ऑपरेशन का नाम सुन हिचकिचा रहा था। इस पर डॉक्टर ने इतमीनान दिलाते हुए कहा, ‘‘नवाब साहब! आप फिक्र न करें, दो मिनट में सब ठीक हो जायेगा। आज शाम तक बेगम को बुखार जाता रहेगा। आप यूँ ही परेशान हो रहे हैं। यह तो तीन दिन में अपने घर जा सकेंगी।’
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