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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ


इस अन्तिम विचार ने फतहचन्द के हृदय में इतना जोश भर दिया कि वह लौट पड़े और साहब से जिल्लत का बदला लेने के लिए दो-चार कदम चले; मगर फिर ख्याल आया, आखिर जो कुछ जिल्लत होनी थी, वह तो हो ली! कौन जाने बँगले पर हो या क्लब चला गया हो। उसी समय उन्हें शारदा की बेवसी और बच्चों का बिना बाप के हो जाने का ख्याल भी आ गया। फिर लौटे और घर चले।

घर में जाते ही शारदा ने पूछा—किस लिए बुलाया था, बड़ी देर हो गयी

फतहचन्द ने चारपाई पर लेटते हुए कहा—नशे की सनक थी, और क्या शैतान ने मुझे गालियाँ दी, जलील किया। बस, यही रट लगाये हुए था कि देर क्यों की निर्दयी ने चपरासी से मेरा कान पकड़ने को कहा।

शारदा ने गुस्से में आकर कहा—तुमने एक जूता उतार कर दिया नहीं सुअर को

फतहचन्द—चपरासी बहुत शरीफ है। उसने साफ कह दिया—हुजूर, मुझसे यह काम न होगा। मैंने भले आदमियों की इज्जत उतारने के लिए नौकरी नहीं की थी। वह उसी वक्त सलाम करके चला गया।

शारदा—यही बहादुरी है। तुमने उस साहब को क्यों  नहीं फटकारा  

फतहचन्द—फटकारा क्यों नहीं मैंने भी खूब सुनायी। वह छड़ी लेकर दौड़ा—मैंने भी जूता सँभाला। उसने मुझे कई छड़ियाँ जमायीं। मैंने भी कई जूते लगाये।

शारदा ने खुश होकर कहा सच इतना सा मुँह हो गया होगा उसका।

फतहचन्द—चेहरे पर झाड़ू-सी फिरी हुई थी।

शारदा—बड़ा अच्छा किया तुमने, और मारना चाहिए था। मैं होती, तो बिना जान लिए न छो़ड़ती।

फतहचन्द—मार तो आया हूँ लेकिन अब खैरियत नहीं है। देखों क्या नतीजा होता है नौकरी तो जायगी ही, शायद सजा भी काटनी पडे़।

शारदा—सजा क्यों काटनी पड़ेगी क्या कोई इन्साफ करने वाला नहीं है उसने क्यों गालियाँ दीं, क्यों छड़ी जमायी

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