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उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास)

निर्मला (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8556
आईएसबीएन :978-1-61301-175

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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…


कल्याणी–आपको सबों में कौन पसन्द है।

मोटे–मुझे तो दो वर पसन्द हैं। एक वह जो रेलवाई में है, और दूसरा वह जो छापेखाने में काम करता है।

कल्याणी–मगर पहले के तो खानदान में आप दोष बताते हैं?

मोटे–हाँ, यह दोष तो है। छापेखाने वालों को तो रहने दीजिए।

कल्याणी–यहाँ एक हजार देने को कहाँ से आयेगा? एक हजार तो आपका अनुमान है, शायद वह और मुँह फैलाये। आप घर की दशा देख ही रहे हैं, भोजन मिलता जाय, यही गनीमत है। रुपये कहाँ से आयेंगे? जमींदार साहब चार हजार सुनाते हैं, डाक बाबू भी दो हजार का सवाल करते हैं। इनको जाने दीजिए। बस वकील साहब ही बच रहते हैं। पैंतीस साल की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं। इन्हीं को क्यों न रखिए।

मोटेराम–आप खूब सोच विचार कर लें। मैं यों आपकी मर्जी का ताबेदार हूँ। जहाँ कहिएगा वहाँ जा कर टीका कर आऊँगा। मगर हजार का मुँह न देखिए, छापेखाने वाला लड़का रत्न है। उसके साथ कन्या का जीवन सफल हो जाएगा। जैसी यह रूप और गुण की पूरी है, वैसा ही लड़का भी सुन्दर और सुशील है।

कल्याणी–पसन्द तो मुझे भी यही महाराज, पर रुपये किसके घर से आयें? कौन देने वाला है? है कोई दानी? खानेवाले तो खा पीकर चंपत हुए। अब किसी की भी सूरत नहीं दिखाई देती, बल्कि और मुझसे बुरा मानते हैं कि हमें निकाल दिया। जो बात अपने बस है, उसके लिए हाथ ही क्यों फैलाऊँ? सन्तान किसको प्यारी नहीं होती? कौन उसे सुखी नहीं देखना चाहता? पर जब अपना काबू भी हो। आप ईश्वर का नाम लेकर वकील साहब को टीका कर आइये। आयु कुछ अधिक है, लेकिन मरना जीना विधि के हाथ हैं। पैंतीस साल का आदमी बुड्ढा नहीं कहलाता। अगर लड़की के भाग्य में सुख भोगना बदा है, तो जहाँ जायगी सुखी रहेगी, दुःख भोगना है, तो जहाँ जायगी दुःख झेलेगी। हमारी निर्मला को बच्चों से प्रेम है। उनके बच्चों को अपना समझेगी। आप शुभ मुहूर्त देखकर टीका कर आयें।

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