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उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास)

निर्मला (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8556
आईएसबीएन :978-1-61301-175

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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…


लेकिन विवाह तो करना ही था और हो सके तो इसी साल; नहीं तो दूसरे साल फिर नये सिरे से तैयारियाँ करनी पड़ेंगी। अब अच्छे घर की जरूरत न थी। अभागिनी को अच्छा घर-वर कहाँ मिलता! अब तो किसी भाँति सिर का बोझा उतारना था, किसी भाँति लड़की को पार लगाना था-उसे कुएँ में झोंकना था। यह रूपवती है, गुणशीला है, चतुर है, कुलीन है, तो हुआ करे; दहेज नहीं तो उसके सारे गुण दोष हैं; दहेज हो तो सारे दोष-गुण हैं। प्राणी का कोई मूल्य नहीं, केवल दहेज का मूल्य है। कितनी विषम भाग्यलीला है!

कल्याणी का दोष कुछ कम न था। अबला और विधवा होना ही उसे दोषों से मुक्त नहीं कर सकता। उसे अपने लड़के अपनी लड़कियों से कहीं ज्यादा प्यारे थे। लड़के हल के बैल हैं, भूसे खली पर पहला हक उनका है, उनके खाने से जो बचे वह गायों का! मकान था, कुछ नगद था, कई हजार के गहने थे, लेकिन उसे अभी दो लड़कों का पालन-पोषण करना था, उन्हें पढ़ाना-लिखाना था। एक कन्या और भी चार-पाँच साल में विवाह करने योग्य हो जायेगी। इसीलिए वह कोई बड़ी रकम दहेज में न दे सकती थी; आखिर लड़कों को भी तो कुछ चाहिए। वे क्या समझेंगे कि हमारा भी कोई बाप था। पंडित मोटेराम को लखनऊ से लौटे पन्द्रह दिन बीत चुके थे। लौटने के बाद दूसरे ही दिन से वह वर की खोज में निकले थे। उन्होंने प्रण किया था कि मैं लखनऊ वालों को दिखा दूँगा कि संसार में तुम्हीं अकेल नहीं हो, तुम्हारे ऐसे और भी कितने पड़े हुए हैं। कल्याणी रोज दिन गिना करती थी। आज उसने उन्हें पत्र लिखने का निश्चय किया और कलम-दावात लेकर बैठी थी कि पंडित मोटेराम ने पदार्पण किया।

कल्याणी–आइये, पंडितजी मैं तो आपको खत लिखने जा रही थी; कब लौटे?

मोटेराम–लौटा तो प्रातःकाल ही था, पर इसी समय एक सेठ के यहाँ से निमन्त्रण आ गया। कई दिन से तर माल न मिले थे। मैंने कहा कि लगे हाथ यह भी काम निपटाता चलूँ। अभी उधर से ही लौटा आ रहा हूँ, कोई पाँच सौ ब्राह्मणों की पंगत थी।

कल्याणी–कुछ कार्य भी सिद्ध हुआ या रास्ता ही नापना पड़ा।

मोटे–कार्य क्यों न सिद्ध होगा? भला, यह भी कोई बात है? पाँच जगह बातचीत कर आया हूँ। पाँचों की नकल लाया हूँ। उनमें से आप चाहे जिसे पसन्द करें। यह देखिए इस लड़के का बाप डाक के सीगे में १००/- महीने का नौकर है। लड़का अभी कालेज में पढ़ रहा है मगर नौकरी का भरोसा है, घर में कोई जायदाद नहीं। लड़का होनहार मालूम होता है। खानदान भी अच्छा है। २०००/- में बात तय हो जायगी। माँगते तो यह तीन हजार हैं।

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