लोगों की राय

उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास)

निर्मला (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :304
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8556
आईएसबीएन :978-1-61301-175

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

364 पाठक हैं

अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…


अपनी ऐनक ढूंढते फिरते थे। बेधड़क अन्दर चले आये। निर्मला द्वार की ओर केश खोले लेटी हुई थी। डॉक्टर साहब को देखते ही चौंककार उठ बैठी और सिर ढांकती हुई चारपाई से उतकर खड़ी हो गई। डॉक्टर साहब ने लौटते हुए चिक के पास खड़े होकर कहा–क्षमा करना निर्मला, मुझे मालूम न था कि यहां हो! मेरी ऐनक मेरे कमरे में नहीं मिल रही है, न जाने कहां उतार कर रख दी थी। मैंने समझा शायद यहां हो।

निर्मला ने चारपाई के सिरहाने आले पर निगाह डाली तो ऐनक की डिबिया दिखाई दी। उसने आगे बढ़कर डिबिया उतार ली, और सिर झुकाये, देह समेटे, संकोच से डॉक्टर साहब की ओर हाथ बढ़ाया। डॉक्टर साहब ने निर्मला को दो-एक बार पहले भी देखा था, पर इस समय के-से भाव कभी उसके मन में न आये थे। जिस ज्वाला को वह बरसों से हृदय में दवाये हुए थे, वह आज पवन का झोंका पाकर दहक उठी। उन्होंने ऐनक लेने के लिए हाथ बढ़ाया, तो हाथ कांप रहा था। ऐनक लेकर भी वह बाहर न गये, वहीं खोए हुए से खड़े रहे। निर्मला ने इस एकान्त से भयभीत होकर पूछा–सुधा कहीं गई है क्या?

डॉक्टर साहब ने सिर झुकाये हुए जवाब दिया-हां, जरा स्नान करने चली गई हैं।

फिर भी डॉक्टर साहब बाहर न गये। वहीं खड़े रहे। निर्मला ने फिर पूछा–कब तक आयेगी?

डॉक्टर साहब ने सिर झुकाये हुए कहा–आती होंगीं।

फिर भी वह बाहर नहीं आये। उनके मन में घारे द्वन्द्व मचा हुआ था। औचित्य का बंधन नहीं, भीरुता का कच्चा तागा उनकी जबान को रोके हुए था। निर्मला ने फिर कहा–कहीं घूमने-घामने लगी होंगी। मैं भी इस वक्त जाती हूं।

भीरुता का कच्चा तागा भी टूट गया। नदी के कगार पर पहुंच कर भागती हुई सेना में अद्भुत शक्ति आ जाती है। डॉक्टर साहब ने सिर उठाकर निर्मला को देखा और अनुराग में डूबे हुए स्वर में बोले- नहीं, निर्मला, अब आती हो होंगी। अभी न जाओ। रोज सुधा की खातिर से बैठती हो, आज मेरी खातिर से बैठो। बताओ, कब तक इस आग में जला करु? सत्य कहता हूं निर्मला…।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book