उपन्यास >> निर्मला (उपन्यास) निर्मला (उपन्यास)प्रेमचन्द
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अद्भुत कथाशिल्पी प्रेमचंद की कृति ‘निर्मला’ दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि में भारतीय नारी की विवशताओं का चित्रण करने वाला एक सशक्तम उपन्यास है…
रुक्मिणी की याद आते ही सियाराम घर की ओर चल दिया। वह अगर और कुछ न कर सकती थी, तो कम-से-कम उसे गोद में चिमटाकर रोती थी? उसके बाहर से आने पर हाथ-मुंह धोने के लिए पानी तो रख देती थीं। संसार में सभी बालक दूध की कुल्लियों नहीं करते, सभी सोने के कौर नहीं खाते। कितनों को पेट भर भोजन भी नहीं मिलता; पर घर से विरक्त वही होते हैं, जो मातृ-स्नेह से वंचित हैं।
सियाराम घर की ओर चला ही कि सहसा बाबा परमानन्द एक गली से आते दिखायी दिये।
सियाराम ने जाकर उनका हाथ पकड़ लिया। परमानन्द ने चौंककर पूछा–बच्चा, तुम यहां कहां?
सियाराम ने बात बनाकर कहा–एक दोस्त से मिलने आया था। आपका स्थान यहां से कितनी दूर है?
परमानन्द–हम लोग तो आज यहां से जा रहे हैं, बच्चा, हरिद्वार की यात्रा है।
सियाराम ने हतोत्साह होकर कहा–क्या आज ही चले जाइएगा?
परमानन्द–हां बच्चा, अब लौटकर आऊंगा, तो दर्शन दूंगा?
सियाराम ने कात कंठ से कहा–मैं भी आपके साथ चलूंगा।
परमानन्द–मेरे साथ! तुम्हारे घर के लोग जाने देंगे?
सियाराम–घर के लोगों को मेरी क्या परवाह है? इसके आगे सियाराम और कुछ न कह सका। उसके अश्रु-पूरित नेत्रों ने उसकी करुण-गाथा उससे कहीं विस्तार के साथ सुना दी, जितनी उसकी वाणी कर सकती थी।
परमानन्द ने बालक को कंठ से लगाकर कहा–अच्छा बच्चा, तेरी इच्छा हो तो चल। साधु-सन्तों की संगति का आनन्द उठा। भगवान् की इच्छा होगी, तो तेरी इच्छा पूरी होगी।
दाने पर मण्डराता हुआ पक्षी अन्त में दाने पर गिर पड़ा। उसके जीवन का अन्त पिंजरे में होगा या व्याध की छुरी के तले- यह कौन जानता है?
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