उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
झिनकू–माता, तूने मेरा बड़ा अपमान किया है। अब मैं यह एक क्षण भी नहीं ठहरूँगा। तुमको इसका फल मिलेगा, अवश्य मिलेगा।
लौंगी–लो, बस, चले ही जाओ मेरे घर से! धूर्त, पाखण्डी कहीं का। बड़ा जोतसी है, तो बता मेरी उम्र कितनी है? लाला अगर तुम्हें धन का लोभ हो तो जितना चाहो, मुझसे ले जाओ। मेरी बिटिया को कुएँ में न ढकेलो। क्यों उसके दुश्मन बने हुए हो? जो कुछ कर रहे हो, उसका सारा दोष तुम्हारे ही सिर जायेगा। तुम इतना भी नहीं समझते कि बूढ़े आदमी के साथ कोई लड़की कैसे सुख से रह सकती है! धन से बूढे जवान तो नहीं हो जाते।
झिनकू–माताजी, राजा साहब की आयु, ज्योषित विद्या के अनुसार...
लौंगी–तू फिर बोला? चुपका खड़ा क्यों नहीं रहता।
झिनकू–दीवान साहब, अब नहीं ठहर सकता।
लौंगी–क्यों, ठहरोगे क्यों नहीं? दच्छिना तो लेते जाओ!
यह कहते हुए लौंगी ने कोठरी में जाकर कज़लौटे से काजल निकाला और तुरन्त बाहर आ, एक हाथ से झिनकू को पकड़ा दूसरे से उसके मुँह पर काजल पोत दिया। बहुत उछले-कूदें, बहुत फड़फड़ाएः पर लौंगी ने जौ भर भी न हिलने दिया, मानों बाज ने कबूतर को दबोच लिया हो। दीवान अब अपनी हँसी न रोक सके। मारे हँसी के मुँह से बात तक न निकलती थी। मुंशीजी अभी तक झिनकू की विद्या का राग अलाप रहे थे और लौंगी झिनकू को दबोचे हुए चिल्ला रही थी–थोड़ा चूना लाओ, तो इसे पूरी दच्छिना दे दूँ! मेरे धन्य भाग कि आज जोतसीजी के दर्शन हुए!
आखिर मुंशीजी को गुस्सा आ गया। उन्होंने लौंगी का हाथ पकड़कर चाहा कि झिनकू का गला छुड़ा दें। लौंगी ने झिनकू को तो न छोड़ा, एक हाथ से तो उसकी गर्दन पकड़े हुए थीं, दूसरे हाथ से मुंशीजी की गर्दन पकड़ ली और बोली–मुझसे ज़ोर दिखाते हो, लाला? बड़े मर्द हो, तो छुड़ा लो गर्दन! बहुत दूध-घी बेगार में लिया होगा। देखें, वह ज़ोर कहाँ है?
दीवान–मुंशीजी, आप खड़े क्या हैं, छुड़ा लीजिए गर्दन।
मुंशीजी–मेरी यह साँसत हो रही है और आप खड़े हँस रहे हैं।
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