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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


राजा–इलाके का क्या हाल है? फ़सल तो अबकी बहुत अच्छी है।

मुंशी–हुज़ूर, मैंने अपनी उम्र में ऐसी अच्छी फ़सल नहीं देखी। अगर पूरब के इलाके में २०० कुएँ बन जाते, तो फ़सल दुगुनी हो जाती। पानी का वहाँ बड़ा कष्ट है।

राजा–मैं खुद इसी फ़िक्र में हूँ। कुएँ क्या, मैं तो एक नहर बनवाना चाहता हूँ। अरमान तो दिल में बड़े-बड़े थे; मगर सामने अँधेरा देखकर कुछ हौसला नहीं होता। सोचता हूँ, किसके लिए यह जंजाल बढ़ाऊँ।

इस भूमिका के बाद विवाह की चर्चा अनिवार्य थी।

राजा–मैं अब क्या विवाह करूँगा? जब ईश्वर ने अब तक संतान न दी, तो अब कौन-सी आशा है?

मुंशी–ग़रीबपरवर, अभी आपकी उम्र ही क्या है। मैंने ८० बरस की उम्र में आदमियों के भाग्य जागते देखे हैं।

राजा–फिर मुझसे अपनी कन्या का विवाह कौन करेगा?

मुंशी–अगर आपका ज़रा-सा इशारा पा गया होता, तो अब तक कभी ही बहूजी घर में आ गई होतीं। राजा से अपनी कन्या का विवाह करना किसे बुरा लगता है?

राजा–लेकिन मुझे तो अब ऐसी स्त्री चाहिए, जो सुशिक्षित हो, विचारशील हो। राज्य के मामलों को समझती हो, अंगरेज़ी रहन-सहन से परिचित हो। बड़े-बड़े अफ़सर आते हैं। उनकी मेमों का आदर-सत्कार कर सके। घर अंगरेज़ी ढंग से सजा सके। बातचीत करने में चतुर हो। बोलने में न झिझके। ऐसी स्त्री आसानी से नहीं मिल सकती। मिली भी तो उसमें चरित्र-दोष अवश्य होंगे। जहाँ ऐसी स्त्रियों को देखता हूँ, भ्रष्ट ही पाता हूँ। मैं तो ऐसी स्त्री चाहता हूँ, जो इन गुणों के साथ निष्कलंक हो। ऐसी एक कन्या मेरी निग़ाह में है, लेकिन वहाँ मेरी रसाई नहीं हो सकती।

मुंशी–क्या इसी शहर में है?

राजा–शहर में ही नहीं, घर ही में समझिए।

मुंशी–अच्छा, समझ गया। मैं तो चकरा गया कि इस शहर में ऐसा कौन राजा-रईस है, जहाँ हुज़ूर की रसाई नहीं हो सकती। वह तो सुनकर निहाल हो जाएँगे, दौड़ते हुए करेंगे। कन्या सचमुच देवी है। ईश्वर ने उसे रानी बनने ही के लिए बनाया है। ऐसी विचारशील लड़की मेरी नज़र से नहीं गुज़री।

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