लोगों की राय
उपन्यास >>
कायाकल्प
कायाकल्प
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2014 |
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
|
पुस्तक क्रमांक : 8516
|
आईएसबीएन :978-1-61301-086 |
 |
|
8 पाठकों को प्रिय
320 पाठक हैं
|
राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
चक्रधर के पेट में चूहे दौड़ने लगे कि तस्वीर क्योंकर ध्यान से देखूँ। वहाँ देखते शरम आती थी, मेहमान को अकेला छोड़कर घर में न जाते बनता था। कई मिनट तक तो सब्र किए बैठे रहे, लेकिन न रहा गया। पान की तश्तरी और तस्वीर लिये हुए घर में चले आये। चाहते थे कि अपने कमरे में जाकर देखें कि निर्मला ने पूछा–क्या बातचीत हुई? कुछ देंगे-दिलाएँगे भी कि वही ५१ रुपयेवालों में से हैं?
चक्रधर ने उग्र होकर कहा–अगर तुम मेरे सामने देने-दिलाने का नाम लोगी, तो ज़हर खा लूँगा।
निर्मला–वाह रे! तो पच्चीस बरस तक यों ही पाला-पोसा है क्या? मुँह धो रखें!
चक्रधर–तो बाज़ार में खड़ा करके बेच क्यों नहीं लेतीं? देखो, कै टके मिलते हैं।
निर्मला–तुम तो अभी से ससुर के पक्ष में मुझसे लड़ने लगे। ब्याह के नाम ही में कुछ जादू है क्या?
इतने में चक्रधर की छोटी बहन मंगला तश्तरी में पान रखकर उनको देने लगीं, तो काग़ज़ में लिपटी हुई तसवीर उसे नज़र आयी। उसने तसवीर ले ली और लालटेन के सामने ले जाकर बोली–यह बहू की तसवीर है। देखो, कितनी सुन्दर हैं!
निर्मला ने जाकर तसवीर देखी, तो चकित रह गई। उसकी आँखें आनन्द से चमक उठीं। बोली–बेटा, तेरे भाग्य जाग गए। मुझे तो कुछ भी न मिले, तो भी इससे तेरा ब्याह कर दूँ। कितनी बड़ी-बड़ी आम की फाँक-सी आँखें हैं, मैंने ऐसी सुन्दर लड़की नहीं देखी।
चक्रधर ने समीप जाकर उड़ती हुई नज़रों से तसवीर देखी और हँसकर बोले–लखावरी ईंट की-सी मोटी तो नाक है, उस पर कहती हो, कितनी सुन्दर है!
निर्मला–चल, दिल में तो फूला न समाता होगा, ऊपर से बातें बनाता है।
चक्रधर–इसी मारे मैं यहाँ न लाता था। लाओ, लौटा दूँ।
निर्मला–तुझे मेरी ही कसम है, जो भाँजी मारे। मुझे तो इस लड़की ने मोह लिया।
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai