लोगों की राय

नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508
आईएसबीएन :978-1-61301-083

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

36 पाठक हैं

अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।


और, यदि मैं आपको ओबैदुल्लाह के पास न ले जाऊं; तो कूफ़ा में नहीं घुस सकता। हाँ, संसार विस्तृत है, कयामत के दिन आपके नाना की कृपा दृष्टि से वंचित होने की अपेक्षा कहीं यही अच्छा है कि किसी दूसरी ओर निकल जाऊं। आप मुख्य मार्ग को छोड़कर किसी अज्ञात मार्ग से कहीं और चले जायें। मैं कूफ़ा के गवर्नर (अर्थात् ‘आमिल’) को लिख दूंगा कि हुसैन से मेरी भेंट नहीं हुई, वह किसी दूसरी ओर चले गए हैं। मैं आपको कसम दिलाता हूं कि अपने पर दया कीजिए, और कूफ़ा न जाइए।’’ पर हुसैन ने कहा– ‘‘तुम मुझे मौत से क्यों डराते हो? मैं तो शहीद होने के लिए ही चला हूं।’’ उस समय यदि हुसैन हुर की सेना पर आक्रमण करते, तो संभव था, उसे परास्त कर देते, पर अपने इष्ट-मित्रों के अनुरोध करने पर भी उन्होंने यहीं कहा– ‘‘हम लड़ाई के मैदान में अग्रसर न होंगे, यह हमारी नीति के विरुद्ध है।’’ इससे भी यही बात सिद्ध होती है कि हुसैन को अब अपनी आत्मरक्षा का कोई उपाय न सूझता था। उनमें साधुओं का सा संतोष था, पर योद्धाओं का सा धैर्य न था, जो कठिन-से-कठिन समय पर भी कष्ट निवारण का उपाय निकाल लेते हैं। उनमें महात्मा गांधी का-सा आत्मसमर्पण था, किंतु शिवाजी की दूरदर्शिता न थी।

इधर हुसैन और उनके आत्मीय तथा सहायकगण तो अपने-अपने खीमे गाड़ रहे थे, और उधर ओबैदुल्लाह– कूफ़ा का गर्वनर– लड़ाई की तैयारी कर रहा था। उसने ‘उमर-बिन-साद’ नाम के एक योद्धा को बुलाकर हुसैन की हत्या करने के लिये नियुक्त किया, और इसके बदले में ‘रै सूबे के आमिल का उच्च पद देने को कहा। उमर-बिन-साद विवेकहीन प्राणी न था। वह भली-भांति जानता था कि हुसैन की हत्या करने से मेरे मुख पर ऐसी कालिमा लग जायेगी, किंतु ‘रै’ सूबे का उच्च पद उसे असमंजस में डाले हुए था। उसके संबंधियों ने समझाया– ‘‘तुम हुसैन की हत्या करने का बीड़ा न उठाओ, इसका परिणाम अच्छा न होगा।’’ उमर ने जाकर ओबैदुल्लाह से कहा– ‘‘मेरे सिर पर हुसैन के वध का भार न रखिए।’’ परंतु ‘रै’ की गवर्नरी छोड़ने को वह तैयार न हो सका। अतएव अब ओबैदुल्लाह ने साफ़-साफ़ कह दिया कि ‘रै’ का उच्च पद हुसैन की हत्या किए बिना नहीं मिल सकता। यदि तुम्हें यह सौदा महंगा जंचता हो, तो कोई जबरदस्ती नहीं है। किसी और को यह पद दिया जायेगा।’’ तो उमर का आसन डोल गया। वह इस निषिद्ध कार्य के लिए तैयार हो गया। उसने अपनी आत्मा को ऐश्वर्य-लालसा के हाथ बेच दिया। ओबैदुल्लाह ने प्रसन्न होकर उसे बहुत कुछ इनाम-इकराम दिया, और चार हज़ार सैनिक साथ नियुक्त कर दिए। उमर-बिन-साद की आत्मा अब भी उसे क्षुब्ध करती रही। वह सारी रात पड़ा अपनी अवस्था या दुरवस्था पर विचार करता रहा। वह जिस विचार से देखता, उसी से अपना यह कर्म घृणित जान पड़ता था। प्रातःकाल वह फिर कूफ़ा के गवर्नर के पास गया। उसने फिर अपनी लाचारी दिखाई। परंतु ‘रै’ की सूबेदारी ने उस पर फिर विजय पाई। जब वह चलने लगा, तो ओबैदुल्लाह ने उसे कड़ी ताक़ीद कर दी कि हुसैन और उनके साथी फ़रात-नदी के समीप किसी तरह न आने पावें, और एक घूंट पानी भी न पी सकें। हुर की १०००० सेनाएं भी उमर के साथ आ मिली।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book