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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508
आईएसबीएन :978-1-61301-083

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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।

पहला अंक

पहला दृश्य

{समय-नौ बजे रात्रि। यजीद, जुहाक, शम्स और कई दरबारी बैठे हुए हैं। शराब की सुराही और प्याला रखा हुआ है।}

यजीद– नगर में मेरी खिलाफ़त का ढिंढोरा पीट दिया गया?

जुहाल– कोई गली, कूचा, नाका, सड़क, मसजिद, बाजार, खानक़ाह ऐसा नहीं है, जहां हमारे ढिंढोरे की आवाज न पहुंची हो। यह आवाज़ वायुमंडल को चीरती हुई हिजाज, यमन, इराक, मक्का-मदीना में गूंज रही है और, उसे सुनकर शत्रुओं के दिल दहल उठे हैं।

यजीद– नक्क़ार्ची को खिलअत दिया जाये।

जुहाक– बहुत खूब अमीर!

यजीद– मेरी बैयत लेने के लिए सबको हुक्म दे दिया गया?

जुहाक– अमीर के हुक्म देने की जरूरत न थी। कल सूर्योदय से पहले सारा शाम बैयत लेने को हाजिर हो जायेगा।

यजीद– (शराब का प्याला पीकर) नबी ने शराब को हराम कहा है। यह इस अमृत-रस के साथ कितना घोर अन्याय है! उस समय के लिये निषेध सर्वथा उचित था, क्योंकि उन दिनों किसी को यह आनंद भोगने का अवकाश न था। पर अब वह हालत नहीं है। तख्त पर बैठे हुए खलीफ़ा के लिए ऐसी नियामत हराम समझने से तो यह कहीं अच्छा है कि वह खलीफ़ा ही न रहे। क्यों जुहाक, कोई कासिद मदीने भेजा गया?

जुहाक– अमीर के हुक्म का इंतजार था।

यजीद– जुहाक, कसम है अल्लाह की; मैं इस विलंब को कभी क्षमा नहीं कर सकता। फौरन कासिद भेजो और वलीद को सख्त ताकीद लिखो कि वह हुसैन से मेरे नाम पर बैयत ले। अगर वह इनकार करें, तो उन्हें कत्ल कर दे। इनमें जरा भी देर न होनी चाहिए।

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