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नाटक-एकाँकी >> करबला (नाटक)

करबला (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :309
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8508
आईएसबीएन :978-1-61301-083

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अमर कथा शिल्पी मुशी प्रेमचंद द्वारा इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद के नवासे हुसैन की शहादत का सजीव एवं रोमांचक विवरण लिए हुए एक ऐतिहासित नाटक है।


अब निज कुटुंब के योद्धाओं की बारी आई। इस वंश के पूर्वज हाशिम नाम के एक पुरुष थे। इसीलिए हज़रत मोहम्द का वंश हाशिम कहलाता है। इस संग्राम में पहला हाशिमी जो क्षेत्र में आया, वह अब्दुल्ला था। यह उसी मुसलिम नाम के वीर का बालक था, जो पहले शहीद हो चुका था। उसके बाद कुटुंब के और वीर निकले। जाफ़र इमाम हसन के तीन बेटे, अब्बास के कई भाई, हज़रत अली के कई बेटे और सब बारी-बारी से लड़कर शहीद हुए। हज़रत अब्बास से हुसैन ने कहा– ‘‘मैं बहुत प्यासा हूं।’’ संध्या हो गई थी। अब्बास पानी लाने चले, पर रास्ते में घिर गए। वह असाधारण वीर पुरुष थे। हाशिमी लोगों में इतनी वीरता से कोई नहीं लड़ा। एक हाथ कट गया, तो दूसरे हाथ से लड़े। जब वह हाथ भी कट गया, तो जमीन पर गिर पड़े। उनके मरने का हुसैन को अत्यंत शोक हुआ। बोले– ‘‘अब मेरी कमर टूट गई।’’ अब्बास के बाद हुसैन के नौजवान बेटे अकबर मैदान में उतरे। हुसैन ने अपने हाथों उन्हें शस्त्रों से सुसज्जित किया। आह! कितना हृदय-विदारक दृश्य है। बेटे ने खड़े होकर हुसैन से जाने की आज्ञा मांगी, पिता का वीर हृदय अधीर हो गया। हुसैन ने निराशा और शोक से अली अकबर को देखा, फिर आँखें नीची कर लीं और रो दिए। जब वह शहीद हो गया तो शोक-विहृल पिता ने जाकर लाश के मुंह पर अपना मुंह रख दिया, और कहा– ‘‘बेटा, तुम्हारे बाद अब जीवन को धिक्कार है।’’ पुत्र-प्रेम की इहलोक की ममता के आदर्श पर, गौरव पर कितनी बड़ी विजय है?

अब हुसैन अकेले रह गए। केवल एक सात वर्ष का भतीजा और हसन का एक दुधमुंहां पोता बाकी था। हुसैन घोड़े पर सवार महिलाओं के खीमों की ओर आए, और बोले– ‘‘बच्चे को लाओ, क्योंकि अब उसे कोई प्यार करने वाला न रहेगा।’’ स्त्रियों ने शिशु को उनकी गोद में रख दिया। वह अभी उसे प्यार कर रहे थे कि अकस्मात् एक तीर उसकी छाती में लगा, और वह हुसैन की गोद में ही चल बसा? उन्होंने तुरंत तलवार से गड्ढा खोदा, और बच्चे की लाश वहीं गाड़ दी? फिर अपने भतीजे को शत्रुओं के सामने खड़ा करके बोले– ‘‘ऐ अत्याचारियों, तुम्हारी निगाह में मैं पापी हूं, पर इस बालक ने तो कोई अपराध नहीं किया, इसे क्यों प्यासा मारते हो?’’ यह सुनकर किसी नर-पिशाच ने एक तीर चलाया, जो बालक के गले को छेदता हुआ हुसैन की बांह में गड़ गया। तीर के निकलते ही बालक की क्रीड़ाओं का अंत हो गया।

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