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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

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महापुरुषों की जीवनियाँ


गेरीबाल्डी इन सारी विरोधी शक्तियों का सामना करने के लिए तैयार था। पहले नेपुल्स के बादशाह से उसकी मुठभेड़ हुई। उसके साथ १५ हजार पक्के, अनेक लड़ाइयाँ देखे हुए सिपाही थे। पर इस बड़ी सेना को उसने पलक मारते छिन्न-भिन्न कर दिया और बहुत दूर तक पीछा करता चला गया। उसका विचार था कि नेपुल्स पर चढ़ जाए, पर फ्रांसीसियों के आ पहुँचने की ख़बर सुनकर लौट पड़ा। फ्रांसीसी सिपाही जो अफ्रीका के मैदान से ताज़ा-ताज़ा थे, बड़ी दृढ़ता से लड़े और करीब था कि शहर में घुस पड़ें कि इतने में गेरीबाल्डी अपने एक हज़ार स्वयं सेवकों के साथ आ पहुँचा और घमासान युद्ध के बाद आठ हजार अनुभवी फ्रांसीसी सैनिकों के पाँव उखाड़ दिए। फ्रांसीसी जनरल ऐसे घबराया कि सन्धि की प्रार्थना की। गेरीबाल्डी इसके विरुद्ध था, क्योंकि वह जानता था कि शत्रु केवल कुमुक की प्रतीक्षा करने के लिए मुहलत चाहता है; पर मेज़िनी ने सुलह कर लेना ही उचित समझा। आखिर इस अदूरदर्शिता का परिणाम यह हुआ कि फ्रांसीसियों ने धोखा देकर रोम पर कब्जा कर लिया और गेरीबाल्डी को बड़ी परेशानी के साथ वहाँ से भागना पड़ा।

इस प्रकार पराजित होकर गेरीबाल्डी अपने पक्के साथियों के साथ, जो डेढ़ हजार के लगभग थे, ईश्वर का नाम ले चल खड़ा हुआ। उसकी पतिप्राणा पत्नी भी उसके साथ थी। बहुत दिनों तक वह देश में मारा-मारा फिरता रहा। साथी दिन-दिन घटते जाते थे। न रक्षा का कोई सामान था, न हरबे-हथियार का कोई प्रबन्ध। शत्रु उसकी एक-एक हरकत की जाँच-पड़ताल किया करते थे और उसे इतनी मुहलत न देते थे कि जनता को भड़काकर कुछ करा सके। आज यहां है, कल वहाँ है, नित्य ही शत्रु के धावे होते थे। गेरीबाल्डी के इस जीवन का वृत्तांत बहुत ही मनोरंजक कहानी है। सच है, स्वदेश की सेवा सहज काम नहीं है। उसके लिए ऊँचा हौसला-फ़ौलाद की दृढ़ता, दिन-रात मरने-पिसने का अभ्यास और हर समय जान हथेली पर लिये रहने की आवश्यकता है। जब तक यह गुण अपने स्वभाव में समा न जायँ, स्वदेश सेवा का व्रत लेना जबानी ढकोसला है।

अन्त में एक मौके पर आस्ट्रिया की सेना ने उसे घेर लिया कि कहीं से निकल भागने का रास्ता न दिखाई देता था। उसके साथियों ने जान बचाने का कोई उपाय न देख, हिम्मत हार दी और लगभग ९०० आदमियों ने हथियार रखकर शत्रु से प्राणभिक्षा माँगी; पर आस्ट्रिया की सेना का हृदय इतना कलुषित हो रहा था कि उसे इन अभागों की दशा पर तनिक भी दया न आयी, और उस रियायत के बदले, जो युद्ध के नियमों के अनुसार आत्मसमर्पण करने वालों पर की जानी चाहिए, उसने इन लोगों को कैद करके निर्वासित कर दिया। कितनों ही को कोड़े भी लगवाए। गेरीबाल्डी के साथ कुल ३०० आदमी थे। परीक्षा का समय बुरा होता है, पर उसकी दृढ़ता में तनिक भी अन्तर न पड़ा और न तनिक भी डरा-घबराया। उस छोटी-सी सेना के साथ शत्रु के घेरे से लड़ता-भिड़ता निकल पड़ा और उनकी पाँतों की चीरता-फाड़ता समुद्र के किनारे आ पहुँचा।

यहाँ १५ नावें तैयार थीं। उनमें बैठकर वेनिस की ओर चल पड़ा। थोड़ी दूर गया था कि आस्ट्रिया के जहाज पीछा करते हुए दिखाई दिए और देखते-देखते उसके साथ की १३ नावें उनके हाथ में पड़ गईं। केवल दो, जिनमें गेरीबाल्डी, उसकी पत्नी और कुछ साथी सवार थे, एक टापू के किनारे आ लगीं। यहाँ वह घटना घटित हुई, जो गेरीबाल्डी के जीवन का सबसे करुण अध्याय है बेचारी अनीता गर्भवती थी और दिन-रात दौड़ते-भागते फिरने के कष्टों से घबरा गई थी। थकावट और रोग की प्रबलता ने उसे चलने-फिरने में भी असमर्थ बना दिया था।

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