लोगों की राय

कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

121 पाठक हैं

महापुरुषों की जीवनियाँ


मिस्टर गोखले को दिल से लगी थी कि श्री दादाभाई नौरोजी अपनी सारी जिन्दगी की कोशिश से जिस कल्याणकारी कार्य का आरंभ कर पाए, वह देशवासियों की लापरवाही और कमहिम्मती से नष्ट न हो जाए। इसका सर्वोत्तम उपाय आपको यही दिखाई दिया कि उनके पदचिह्नों का अनुसरण किया जाए। यद्यपि इतने दिनों के अनुभव के बाद भारतवासियों को अब मालूम हो गया है कि अपने कष्टों की कहानी इंग्लैंडवालों को सुनाना बेकार है, और हमारा उद्धार होगा तो अपनी हिम्मत और पुरुषार्थ से ही होगा; पर आपका विश्वास था कि भारत के विषय में ब्रिटिश जनता की वर्तमान उपेक्षा का कारण केवल उसका अज्ञान है। उसकी सहज न्यायप्रियता अब भी लुप्त नहीं हुई है। आपको पूरा भरोसा था कि भारत की स्थिति से परिचित हो जाने के बाद वह अवश्य उसकी ओर ध्यान देगी। हमारे लोकनायकों का सदा यही विचार रहा है। अतः समय-समय पर कांग्रेस के प्रतिनिधियों को विलायत भेजने के यत्न होते रहे हैं। पहली बार जो प्रतिनिधि गए थे, उनमें सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और स्वर्गीय मिस्टर मनमोहन घोष जैसे धुरन्धर वक्ता थे। उनका यत्न बहुत कुछ फलजनक सिद्ध हुआ। १९०६ ई० में फिर यही आन्दोलन उठा और निश्चय हुआ कि हर सूबे से एक-एक प्रतिनिधि इंग्लैण्ड भेजा जाए। इस गुरुतर कार्य के लिए सारे बम्बई प्रान्त की अनुरोध भरी दृष्टि मिस्टर गोखले की ओर उठी और उनके कठिन कार्यसाधन में आनन्द पानेवाले स्वभाव ने बड़े उत्साह से इस भार को अपने ऊपर लिया जिसे उठाने के लिए आपसे अधिक उपयुक्त व्यक्ति मिल नहीं सकता था।

इंग्लैण्ड में विचारवान् व्यक्तियों ने आपका बड़े प्रेम और उत्साह से स्वागत किया। पर चूँकि इसी बीच बंग भंग और स्वदेशी आन्दोलन की चर्चा भी उठ गई थी, इसलिए भारतवासियों को आशंका थी कि मैंचेस्टर और लंकाशायर वाले, जो स्वदेशी आन्दोलन के कारण रुष्ट हो रहे हैं, आपकी उपेक्षा न करें। सोचा जाता था कि उन स्थानों में जाते हुए आप खुद भी हिचकेंगे। पर आपकी गहरी निगाह ने भाँप लिया कि उससे दूर रहना और भी विलगाव का कारण होगा। जब दवा की आशा उनसे की जाती है, तो दर्द भी उन्हीं से कहना चाहिए। अतः आपने उन नगरों में जाकर ऐसे नए, प्रभावशाली और ओजस्वी भाषण किए कि सुननेवालों के विचार पलट दिए। स्वदेशी आन्दोलन का आपने ज़ोरों से समर्थन किया, जो आपके नैतिक बल का प्रमाण है।

आपने फ़रमाया कि बंगाल में ब्रिटिश माल के तिरस्कार का कारण यह नहीं है कि बंगालियों के विचार विप्लववादी हो गए हैं। इतिहास और अनुभव इसके गवाह हैं कि जैसी राजभक्त और आज्ञापालक जाति भारतीयों की है, वैसी दुनिया की और कोई जाति नहीं हो सकती। जो जाति डेढ़ सौ साल से तनिक भी गरदन न उठाए उसका यकायक बिगड़ उठना अनहोनी बात है, जब तक कि उसके दिल को कोई असह्य चोट न पहुँचे। इसमें सन्देह नहीं कि लार्ड कर्ज़न की कार्यवाइयाँ, और ख़ासकर उनके आखिरी काम ने बंगालियों को बहुत दुखी और क्षुब्ध कर दिया है। फिर भी अभी तक कोई घटना नहीं हुई है, जो किसी सभ्य सरकार के लिए हस्तक्षेप या विरोध का समुचित कारण हो सके। शान्ति और व्यवस्था में तनिक भी अन्तर नहीं पड़ा है। इस स्थिति में दुनिया की कोई और सभ्य जाति, ईश्वर जाने, क्या-क्या उपद्रव मचाती। कोई निष्पक्ष व्यक्ति बंगाल वालों के धैर्य और संयम की सराहना किए बिना नहीं रह सकता। यह सोचना निरा भ्रम है कि स्वदेशी आंदोलन पर इसलिए जोर दिया जा रहा है कि अँगरेज़ों के प्रति उनके मन में शत्रुता का भाव है। बहुत-से ऐंग्लो इंडियन पत्र लोगों को बहका रहे हैं। इस ग़लतफ़हमी में फँसे हुए लोगों को मालूम हो कि बंगाल वालों ने यह तरीका महज इसलिए इख़्तियार किया है कि अपनी चीख-पुकार और फ़रियाद ब्रिटिश जनता के कानों तक पहुँचाएँ और उनकी सहानुभूति प्राप्त करें। जो इस तरीक़े को बुरा समझता हो, वह बतलाए कि हिन्दुस्तानियों के हाथों में और दूसरा कौन सा उपाय है ? क्या भारत सचिव के दरवाजे पर जाकर ‘दाता की जय’ मनाने से काम चलेगा या पार्लियामेंट में एक दो प्रश्न कर लेने से उद्देश्य सिद्ध हो जाएगा ? अब अंगरेज़ों की न्यायशीलता के लिए यही उचित है कि वह भारत सचिव से आग्रह अनुरोध करें। ग़रीब हिन्दुस्तान पर झल्लाना, जो स्वयं ही दलित-अपमानित हो रहा है, मर्दानगी की बात नहीं है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book