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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

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महापुरुषों की जीवनियाँ


कुछ दिन तक सबको भय था कि आप सदा के लिए सार्वजनिक जीवन से अलग हो जाने को विवश किए जाएँगे। आपको निश्चय हो गया कि उन अभियोगों को, जो मैंने सरकार पर लगाए हैं, साबित करना कठिन ही नहीं, स्पष्टतः असाध्य कार्य है, इसलिए अब शराफ़त और मर्दानगी का अनुरोध यही था कि आप भूल स्वीकार कर खेदप्रकाश के द्वारा अपने उन शब्दों का शोधन-मार्जन करें, जिनसे सरकार के आचरण पर धब्बा लगता था। जब अपने दावे को साबित करने का कोई उपाय दिखाई न देता था, तब भी उस पर अड़े रहना आपकी न्यायशील दृष्टि में सरकार का अकारण अपमान करना था। अतः सब पहलुओं पर भली भाँति विचार कर लेने के बाद आपने अपनी सुप्रसिद्धि क्षमा-याचना प्रकाशित की। पर आपके देशवासी जो वस्तुस्थिति से पूर्ण परिचित न थे, तुरंत आपसे अप्रसन्न हो गए और आपके इस कार्य को अव्यवस्थित चितत्ता तथा भीरुता बताया। बड़ी निष्ठुरता से आप पर भर्त्सना के बाण बरसाए गए। यहाँ तक कि ‘मिलीमार’ और खुशामद के इलजाम भी लगाए गए।

यद्यपि उस समय भी भारत और इंग्लैंड दोनों ही देशों में ऐसे न्यायाधीश और दृढ़ विचार के पुरुष विद्यमान थे, जिन्होंने दिल खोलकर आपके इस सत्साहस की सराहना की। स्वर्गीय जस्टिस रानाडे ने, जो अपने सुयोग्य और सच्चे शिष्य की गतिविधि को पितृसुलभ स्नेह और उत्सुकता से देख रहे थे, आपके इस प्रकार हृदय शुद्धि का प्रमाण देने पर प्रसन्नता प्रकट की। पर धन्य है वह उदाराशयता और महानुभावता कि मित्रों और शुभचिन्तकों के दिल को टुकड़े-टुकड़े कर देनेवाले वचन और कर्म आपके उत्साह को तनिक भी घटा न सके। आपने इस फ़ारसी कहावत—‘हरिक अज़ दोस्त मीरसद नेकोस्त’ (मित्र से जो कुछ भी मिले, शुभ ही होगा) का अनुसरण कर सारे निन्दा-अपमान को माथे चढ़ा लिया। ऐसी स्थिति में एक बनावटी देशभक्त अपने देशवासियों को कृतघ्नता का दोषी ठहराता, देश की नाकद्री और बेवफाई का रोना रोता और शायद सदा के लिए सार्वजनिक जीवन से मुँह फेर लेता। पर आप उन देशभक्तों में नहीं थे। जन्मभूमि का प्रेम और भाइयों की भलाई का भाव आपकी प्रकृति बन गया था। अपनी सहज अध्यवसायशीलता और एकाग्रता से फिर स्वदेश की सेवा में जुट गए और प्रसन्नता की बात है कि वह दिन जल्दी ही आया कि भ्रम में पड़े हुए आपके विरोधी अपने आक्षेपों पर लज्जित हुए।

 अभी पत्रकारों का क्रोध ठंडा न हुआ था कि बंबई में प्लेग से त्राहि-त्राहि मच गई। लोग लड़के-बाले, घरबार छोड़-छोड़कर भागने लगे। आवश्यक जान पड़ा कि उत्साही देशभक्त रोगियों की चिकित्सा और सेवा के लिए अपनी जान जोखिम में डालें। जिस आदमी ने सबसे पहले इस भयावनी घाटी में क़दम रखा, वह श्री गोखले ही थे। जिस तत्परता, तन्मयता और विनम्रता के साथ आपने प्लेग प्रतिबन्धक अधिकारियों का हाथ बँटाया, वह आपका ही हिस्सा था। सारा देश आपकी प्रशंसा से गूँजने लगा। लार्ड सैंडर्स्ट भी, जिन्होंने पहले कितनी ही बार आप पर चोटें की थीं, इस समय आपकी देशभक्ति और जनता के प्रति सच्ची सहानुभूति के क़ायल हो गए और कौंसिल में आपको धन्यवाद देकर अपना गौरव बढ़ाया।

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