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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


कुँवर साहब की आँखें लाल थीं। मुख की आकृति भयंकर हो रही थी। कई मुखतार और चपरासी बैठे हुए आग पर तेल डाल रहे थे।

पंडितजी को देखते ही कुंवर साहब बोले–चाँदपार वालों की हरकत आपने देखी?’

पंडित ने नम्र भाव से कहा–जी हाँ, सुनकर बहुत शोक हुआ। ये तो ऐसे सरकश न थे।

कुँवर साहब–यह आप ही के आगमन का फल है, आप अभी स्कूल के लड़के हैं। आप क्या जानें कि संसार में कैसे रहना होता है। यदि आपका बर्ताव असामियों के साथ ऐसा ही रहा तो फिर मैं जमींदारी कर चुका। यह सब आपकी करनी है। मैंने इसी दरवाजे पर असामियों को बाँध-बाँधकर उलटे लटका दिया है और किसी ने चूँ तक न की। आज उनका यह साहस कि मेरे ही आदमी पर हाथ चलाये।

दुर्गानाथ (कुछ दबते हुए)–महाशय, इसमें मेरा क्या अपराध? मैंने तो जब से सुना तभी से स्वयं सोच में पड़ा हूँ।

कुँवर साहब–आपका अपराध नहीं तो किसका है। आप ने ही तो इनको सर चढ़ाया है, बेगार बंद कर दी, आप ही उनके साथ भाईचारे का बर्ताव करते हैं, उनके साथ हँसी-मज़ाक करते हैं। ये छोटे आदमी इस बर्ताव की क़दर क्या जानें। किताबी बातें स्कूलों के लिए हैं। दुनिया के व्यवहार का कानून दूसरा है। अच्छा जो हुआ सो हुआ। अब मैं चाहता हूँ कि इन बदमाशों को इस सरकशी का मज़ा चखाया जाय। असामियों को अपने मालगुजारी की रसीदें तो नहीं दी हैं।

दुर्गानाथ (कुछ डरते हुए)–जी नहीं, रसीदें तैयार हैं, केवल आपके हस्ताक्षरों की देर है।

कुँवर साहब (कुछ संतुष्ट होकर) –यह बहुत अच्छा हुआ। शकुन अच्छे हैं। अब आप इन रसीदों को चिरागअली के सिपुर्द कीजिए। इन लोगों पर बकाया लगान की नालिश की जायगी, फ़सल नीलाम करा लूँगा। जब भूखों मरेंगे तब सूझेगी। जो रुपया अब तक वसूल हो चुका है वह बीज और ऋण के खाते में चढ़ा लीजिए। आपको केवल यही गवाही देनी होगी कि यह रुपया मालगुजारी में नहीं, कर्ज के मद में वसूल किया हुआ है! बस!

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