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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


बादशाह ने रूपा की ओर देखकर कहा–‘रूपा! रूपा! यह क्या माजरा है? तुम भी क्या इस मामले में हो? एक प्याला–मगर नहीं, नहीं। अच्छा–सब साफ़-साफ़ सच कहो। कर्नल मेरे दोस्त–नहीं, अब नहीं, अच्छा कर्नल। सब खुलासावार बयान करो।’

‘सरकार, ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकता। कम्पनी बहादुर का खास परवाना लेकर खुद लाट साहब तशरीफ लाये हैं और आलीजाह से कुछ मशविरा किया चाहते हैं।’

‘मगर यहाँ?’

‘यह नामुमकिन है।’

बादशाह ने कर्नल की तरफ देखा। वह तना खड़ा था और उसका हाथ तलवार की मूठ पर था।

‘समझ गया, सब समझ गया!’ यह कहकर बादशाह कुछ देर हाथों से आँख ढाँपकर बैठ गये। कदाचित् उनकी सुन्दर रस भरी आँखों में आँसू भर आये हो।

रूपा ने पास आकर कहा–‘मेरे खुदाबन्द, बंदी...’

‘हट जा, ऐ नमकहराम, रज़ील बाजारू औरत!’ बादशाह ने यह कहकर एक ठोकर लगायी और कहा–‘तब चलो, मैं चलता हूँ, खुदा हाफ़िज।’

पहले बादशाह, पीछे कप्तान, उसके पीछे रूपा, और सबके अन्त में एक-एक करके सिपाही उसी दरार में विलीन हो गये। महल में किसी को कुछ मालूम न था। वह मूर्तिमान संगीत–वह उमड़ता हुआ आनन्द-समुद्र सदा के लिए मानो किसी जादूगर ने निर्जीव कर दिया।

कलकत्ते के एक उजाड़-से भाग में एक बहुत विशाल मकान में वाजिदअली शाह नजरबन्द थे। ठाट लगभग वही था। सैकड़ों दासियाँ, बाँदियाँ और वेश्याएँ भरी हुई थीं, पर वह लखनऊ के रंग कहाँ?

खाना खाने का वक्त हुआ, और दस्तरखान पर खाना चुना गया, तो बादशाह ने चख-चखकर फेंक दिया। अँगरेज अफसर ने घबड़ाकर पूछा–‘खाने में क्या नुक्स है?’

जवाब दिया गया–‘नमक खराब है।’

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