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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


उसने फिर कहा–‘तुम्हीं से कह रहे हैं। सुनते हो, उठा ले जाओ अपनी सान धरने की कल, नहीं तो सड़क पर फेंक दूँगा। एक ही कोठरी जिसका मैं दो रुपये किराया देता हूँ, उसमें क्या मुझे अपना कुछ रखने के लिए नहीं है?’

‘ओहो! रामजी तुम हो, भाई मैं भूल गया था। तो चलो, आज ही उसे उठा लाता हूँ।’ कहते हुए शराबी ने सोचा–अच्छी रही, उसी को बेचकर कुछ दिनों तक काम चलेगा।

गोमती नहाकर, रामजी उसका साथी, पास ही अपने घर पर पहुँचा। शराबी को कल देते हुए उसने कहा–ले जाओ, किसी तरह मेरा इससे पिंड छूटे।

बहुत दिनों पर आज उसको कल ढोना पड़ा। किसी तरह अपनी कोठरी में पहुँचकर उसने देखा कि बालक चुपचाप बैठा है। बड़बड़ाते हुए उसने पूछा–‘क्यों रे, तूने कुछ खा लिया कि नहीं?’

‘भर-पेट खा चुका हूँ, और वह देखो तुम्हारे लिए भी रख दिया है।’ कह कर उसने अपनी स्वाभाविक मधुर हँसी से उस रूखी कोठरी को तर कर दिया।

शराबी एक क्षण-भर चुप रहा। फिर चुपचाप जलपान करने लगा। मन ही मन सोच रहा था–यह भाग्य का संकेत नहीं तो और क्या है? चलूँ फिर कल लेकर सान देने का काम चलता करूँ। दोनों का पेट भरेगा। वही पुराना चरखा सिर पर पड़ा। नहीं तो, दो बातें किस्सा-कहानी, इधर-उधर की कहकर अपना काम चला ही लेता था! फिर अब तो बिना कुछ किये घर नहीं चलने का। जल पीकर बोला–‘क्यों रे मधुआ, अब तू कहाँ जायगा?’

‘कहीं नहीं!’

‘यह लो, तो फिर क्या यहाँ जमा गड़ी है कि मैं खोद-खोदकर तुझे मिठाई खिलाता रहूँगा!’

‘तब कोई काम करना चाहिए।’

‘करेगा?’

‘जो कहो?’

‘अच्छा तो आज से मेरे साथ-साथ घूमना पड़ेगा। यह कल तेरे लिए लाया हूँ! चल आज से तुझे सान देना सिखाऊँगा। कहाँ रहूँगा, इसका कुछ ठीक नहीं। पेड़ के नीचे रात बिता सकेगा न?’

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