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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


प्रातः काल हुआ तो लड़ाके वीर फिर आमने-सामने हुए और लोहे से लोहा बजने लगा। वीरमदेव की तलवार गजब ढा रही थी। वे जिधर झुकते थे, पूरे के पूरे साफ कर देते थे। उनकी रणदक्षता से राजपूत सेना प्रसन्न हो रही थी, परंतु मुसलमानों के हृदय बैठे जा रहे थे। यह मनुष्य है या देव, जो न मृत्यु से भय खाता है, न घावों से भय खाता है, न घावों से पीड़ित होता है। जिधर झुकता है विजय लक्ष्मी फूलों की वर्षा करती है। जिधर जाता है, सफलता साथ जाती है। इससे युद्घ करना लोहे के चने चबाना है। शाही सेना नदी के दूसरे पार चली गयी।

वीरमदेव ने राजपूतों के बढ़े हुए साहस देखे, तो गद्गद हो गये, सिपाहियों से कहा, मेरे पीछे-पीछे आ जाओ और घोड़ा नदी में डाल दिया, इस साहस और वीरता पर मुसलमान आश्चर्यचकित हो रहे; परंतु अभी उनका विस्मय कम न हुआ था कि राजपूत किनारे पर आ गये, और तुमुल संग्राम आरम्भ हो गया। मुसलमान सेना लड़ती थी रोटी के लिए, उनके पैर उखड़ गये। राजपूत लड़ते थे मातृभूमि के लिए, विजयी हुए। शाही सेना में भगदड़ मच गयी, सिपाही समरभूमि छोड़ने लगे। वीरमदेव के सिपाहियों ने पीछा करना चाहा, परंतु वीरमदेव ने रोक दिया। भागते शत्रु पर आक्रमण करना वीरता नहीं, पाप है। और जो यह नीच कर्म करेगा, मैं उसका मुँह देखना पसंद न करूँगा।

विजयी सेना कलानौर में प्रविष्ट हुई। स्त्रियों ने उन पर पुष्प बरसाये, लोगों ने रात को दीपमाला की। राजवती ने मुस्कराती हुई आँखों से वीरमदेव का स्वागत किया और उनके कंठ में विजयमाला डाली। वीरमदेव ने राजवती को गले लगा लिया और कहा–‘मुझे तुझ पर मान है, तू राजपूतनियों में सिरमौर है।’

इस पराजय ने अलाउद्दीन के हृदय की भड़कती अग्नि पर तेल का काम किया। उसने चारों ओर से सेना एकत्रित की और चालीस हजार मनुष्यों से कलानौर को घेर लिया। वीरमदेव अब मैदान में निकलकर लड़ना नीतिविरुद्ध समझ दुर्ग में दुबक रहे।

दुर्ग बहुत दृढ़ और ऊँचा था। उसमें प्रवेश करना असंभव था। शाही सेना ने पड़ाव डाल दिया और वह रसद के समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगी। सात मास व्यतीत हो गये, शाही सेना निरंतर डेरा डाले पड़ी रही। दुर्ग में रसद घटने लगी। वीरमदेव ने राजवती से कहा–‘प्रिये! अब क्या होगा?’

राजवती बोली–‘आपका क्या विचार है?’

वीरमदेव ने उत्तर दिया–‘शाही सेना बहुत अधिक है। इससे छुटकारा पाना असम्भव है। परन्तु यह सब युद्ध मेरे लिये है, गेहूँ के साथ घुन भी पिसेंगे, यह क्यों?’

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