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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


माँ– तू वहाँ पहुँचा कैसे?

श्यामा– चौके पर स्टूल रखकर चढ़े अम्माँजी।

केशव– तू स्टूल थामे नहीं खड़ी थी?

श्यामा– तुम्हीं ने तो कहा था!

माँ– तू इतना बड़ा हुआ, तुझे अभी इतना भी नहीं मालूम कि छूने से चिड़ियों के अण्डे गन्दे हो जाते हैं। चिड़िया फिर इन्हें नहीं सेती।

श्यामा ने डरते-डरते पूछा– तो क्या चिड़िया ने अण्डे गिरा दिए हैं, अम्माँ जी?

माँ– और क्या करती। केशव के सिर इसका पाप पड़ेगा। हाय, हाय, जानें ले लीं दुष्ट ने!

केशव रोनी सूरत बनाकर बोला– मैंने तो सिर्फ़ अण्डों को गद्दी पर रख दिया था, अम्माँ जी!

माँ को हंसी आ गयी। मगर केशव को कई दिनों तक अपनी गलती पर अफसोस होता रहा। अण्डों की हिफ़ाजत करने के जोश में उसने उनका सत्यानाश कर डाला। इसे याद करके वह कभी-कभी रो पड़ता था।

दोनों चिड़ियाँ वहाँ फिर न दिखायी दीं।

–  ‘खाके परवाना’ से
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