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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


१७– मेरी पहली बीवी की औलाद को परवरिश की ज़रूरत थी, इसलिए शादी की।

१८– मेरी माँ का ख़याल था कि वह जल्द मरने वाली हैं और मेरी शादी अपने ही सामने कर देना चाहती थीं, इसलिए मेरी शादी हो गई। लेकिन शादी को दस साल हो रहे हैं भगवान की दया से माँ के आशीष बोला– यह कोई रहस्य नहीं, मेरे कर्मों का फल है।

यह वाक्य मैंने चौथी बार उसकी जबान से सुना और बोला– जिन कर्मों का फल ऐसा शक्तिदायक है; उन कर्मों की मुझे भी कुछ दीक्षा दो, मैं ऐसे फलों से क्यों वंचित रहूँ।

साईदयाल ने व्यथापूर्ण स्वर में कहा– ईश्वर न करे कि तुम ऐसा कर्म करो और तुम्हारी जिन्दगी पर उसका काला दाग लगे। मैंने जो कुछ किया वह मुझे ऐसा लज्जाजनक और ऐसा घृणित मालूम होता है कि उसकी मुझे जो कुछ सजा मिले, मैं उसे खुशी के साथ झेलने को तैयार हूँ। आह! मैंने एक ऐसे पवित्र खानदान को, जहाँ मेरा विश्वास और मेरी प्रतिष्ठा थी, अपनी वासनाओं की गन्दगी में लिथेड़ा है, एक ऐसे पवित्र हृदय को जिसमें मुहब्बत का दर्द था, जो सौन्दर्यबाटिका की एक नयी-नयी खिली हुई कली थी, जिसमें सरलता थी, और सच्चाई थी, उस पवित्र हृदय में मैंने पाप और विश्वासघात का बीज हमेशा के लिए बो दिया। यह पाप है जो मुझसे हुआ है और उसका पल्ला उन मुसीबतों से बहुत भारी है जो मेरे ऊपर अब तक पड़ी हैं या आगे चलकर पड़ेगी। कोई सजा, कोई दुख, कोई क्षति उसका प्रायश्चित नहीं कर सकती,

मैंने सपने में भी न सोचा था कि साईदयाल अपने विश्वासों में इतना दृढ़ है। पाप हर आदमी से होते हैं, हमारा मानव जीवन पापों की एक लम्बी सूची है, वह कौन-सा दामन है जिस पर यह काले दाग न हों। लेकिन कितने ऐसे आदमी हैं जो अपने कर्मों की सज़ाओं को इस तरह उदारतापूर्वक मुस्कराते हुए झेलने के लिए तैयार हो। हम आग में कूदते हैं लेकिन जलने के लिए तैयार नहीं होते।

मैं साईदयाल को हमेशा इज्जत की निगाह से देखता हूँ, इन बातों को सुनकर मेरी नजरों में उसकी इज्जत तिगुनी हो गयी। एक मामूली दुनियादार आदमी के सीने में एक फ़क़ीर का दिल छिपा हुआ था जिसमें ज्ञान की ज्योति चमकती थी। मैंने उसकी तरफ श्रद्घापूर्ण आँखों से देखा और उसके गले से लिपटकर बोला– साईदयाल, अब तक मैं तुम्हें एक दृढ़ स्वभाव का आदमी समझता था लेकिन आज मालूम हुआ कि तुम उन पवित्र आत्माओं में हो, जिनका अस्तित्व संसार के लिए वरदान है। तुम ईश्वर के सच्चे भक्त हो, और मैं तुम्हारे पैरों पर सिर झुकाता हूँ।

– उर्दू ‘प्रेम पचीसी’से
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