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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ

होली की छुट्टी

वर्नाक्युलर फ़ाइनल पास करने के बाद मुझे एक प्राइमरी स्कूल में जगह मिली, जो मेरे घर से ग्यारह मील पर था। हमारे हेडमास्टर साहब को छुट्टियों में भी लड़कों को पढ़ाने की सनक थी। रात को लड़के खाना खाकर स्कूल में आ जाते और हेडमास्टर साहब चारपाई पर लेटकर अपने खर्राटों से उन्हें पढ़ाया करते। जब लड़कों में धौल-धप्पा शुरू हो जाता और शोर-गुल मचने लगता तब यकायक वह खरगोश की नींद से चौंक पड़ते और लड़कों को दो-चार तमाचे लगाकर फिर अपने सपनों के मज़े लेने लगते। ग्यायह-बारह बजे रात तक यही ड्रामा होता रहता, यहाँ तक कि लड़के नींद से बेक़रार होकर वहीं टाट पर सो जाते। अप्रैल में सालाना इम्तहान होनेवाला था, इसलिए जनवरी ही से हाय-तौबा मची हुई थी। नाइट स्कूलों पर इतनी रियायत थी कि रात की क्लासों में उन्हें न तलब किया जाता था, मगर छुट्टियाँ बिलकुल न मिलती थीं। सोमवती अमावस आयी और निकल गयी, बसन्त आया और चला गया, शिवरात्रि आयी और गुज़र गयी। और इतवारों का तो ज़िक्र ही क्या है। एक दिन के लिए कौन इतना बड़ा सफ़र करता, इसलिए कई महीनों से मुझे घर जाने का मौक़ा न मिला था। मगर अबकी मैंने पक्का इरादा कर लिया था कि होली पर ज़रूर घर जाऊंगा, चाहे नौकरी से हाथ ही क्यों न धोने पड़े। मैंने एक हफ़्ते पहले से ही हेडमास्टर साहब को अल्टीमेटम दे दिया कि २० मार्च को होली की छुट्टी शुरू होगी और बन्दा १९ की शाम को रुख़सत हो जायगा। हेडमास्टर साहब ने मुझे समझाया कि अभी लड़के हो, तुम्हें क्या मालूम नौकरी कितनी मुश्किलों से मिलती है और कितनी मुश्किलों से निभती है, नौकरी पाना उतना मुश्किल नहीं जितना उसको निभाना। अप्रैल में इम्तहान होनेवाला है, तीन-चार दिन स्कूल बन्द रहा तो बताओ कितने लड़के पास होंगे? साल-भर की सारी मेहनत पर पानी फिर जायगा कि नहीं? मेरा कहना मानो, इस छुट्टी में न जाओ, इम्तहान के बाद जो छुट्टी पड़े उसमें चले जाना। ईस्टर की चार दिन की छुट्टी होगी, मैं एक दिन के लिए भी न रोकूँगा।

मैं अपने मोर्चे पर क़ायम रहा, समझाने-बुझाने, डराने-धमकाने और जवाब-तलब किये जाने के हथियारों का मुझ पर असर न हुआ। १९ को ज्यों ही स्कूल बन्द हुआ, मैंने हेडमास्टर साहब को सलाम भी न किया और चुपके से अपने डेरे पर चला आया। उन्हें सलाम करने जाता तो वह एक न एक काम निकालकर मुझे रोक लेते– रजिस्टर में फ़ीस की मीज़ान लगाते जाओ, औसत हाज़िरी निकालते जाओ, लड़कों की कापियाँ जमा करके उन पर संशोधन और तारीख सब पूरी कर दो। गोया यह मेरा आख़िरी सफ़र है और मुझे ज़िन्दगी के सारे काम अभी खतम कर देने चाहिए।

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