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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


जैनब चली तो खुदैजा ने उसे बदख्शाँ के लालों का एक बहुमूल्य हार विदाई में दिया।

इसलाम पर विधर्मियों के अत्याचार दिन-दिन बढ़ने लगे। अवहेलना की दशा में निकलकर उसने भय के क्षेत्र में प्रेवश किया। शत्रुओं ने उसे समूल नाश करने की आयोजना करना शुरू की। दूर-दूर के कबीलों से मदद माँगी गई। इसलाम में इतनी शक्ति न थी कि शस्त्रबल से शत्रुओं को दबा सकें। हज़रत मुहम्मद ने अन्त को मक्का छोड़कर मदीने की राह ली। उनके कितने ही भक्तों ने उनके साथ हिजरत की। मदीने में पहुँचकर मुसलमानों में एक नई शक्ति, एक नई स्फूर्ति का उदय हुआ। वे निःशंक होकर धर्म का पालन करने लगे। अब पड़ोसियों से दबने और छिपने की ज़रूरत न थी। आत्मविश्वास बढ़ा। इधर भी विधर्मियों का सामना करने की तैयारियाँ होने लगीं।

एक दिन अबुलआस ने आकर स्त्री से कहा– ज़ैनब, हमारे नेताओं ने इसलाम पर जेहाद करने की घोषणा कर दी।

जैनब ने घबराकर कहा– अब तो वे लोग यहाँ से चले गये फिर जेहाद की क्या ज़रूरत?

अबु०– मक्का से चले गये, अरब से तो नहीं चले गये, उनकी ज्यादतियाँ बढ़ती जा रही हैं। जिहाद के सिवा और कोई उपाय नहीं। मेरा उस जिहाद में शरीक होना बहुत ज़रूरी है।

जैन०– अगर तुम्हारा दिल तुम्हें मजबूर कर रहा है तो शौक से जाओ लेकिन मुझे भी साथ लेते चलो।

अबु०– अपने साथ?

जैन०– हाँ, मैं वहाँ आहत मुसलमानों की सेवा-सुश्रुषा करूँगी।

अबु०– शौक से चलो।

घोर संग्राम हुआ। दोनों दलों ने ख़ूब दिल के अरमान निकाले। भाई भाई से, मित्र मित्र से, बाप बेटे से लड़ा। सिद्ध हो गया कि धर्म का बन्धन रक्त और वीर्य के बन्धन से सुदृढ़ है।

दोनों दल वाले वीर थे। अंतर यह था कि मुसलमानों में नया धर्मानुराग था, मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग की आशा थी, दिलों में आत्मविश्वास था जो नवजात सम्प्रदायों का लक्षण है। विधर्मियों में बलिदान का यह भाव लुप्त था।

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