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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


दूसरी– बहुत शर्मिन्दा होंगे।

तीसरी– डरके मारे उनकी साँस तक बन्द हो गयी थी।

गजेन्द्र ने बोलचाल सुनी तो जान में जान आई। समझे शायद घर में जाग हो गईं। लपककर कमरे के दरवाजे पर आए और बोले– जरा देखिए श्यामा कहाँ है, मेरी तो नींद ही न खुली। जल्द किसी को दौड़ाइये।

यकायक उन्हीं औरतों के बीच में श्यामा को खड़े हँसते देखकर हैरत में आ गये।

पाँचों सहेलियों ने हँसना और तालियाँ पीटना शुरू कर दिया।

एक ने कहा– वाह जीजा जी, देख ली आपकी बहादुरी।

श्यामदुलारी– तुम सब की सब शैतान हो।

तीसरी– बीवी तो चोरों के साथ चली गईं और आपने साँस तक न ली!

गजेन्द्र समझ गए, बड़ा धोखा खाया। मगर ज़बान के शेर फौरन बिगड़ी बात बना ली, बोले– तो क्या करता, तुम्हारा स्वाँग बिगाड़ देता! मैं भी इस तमाशे का मज़ा ले रहा था। अगर सबों को पकड़कर मूंछे उखाड़ लेता तो तुम कितनी शर्मिन्दा होतीं। मैं इतना बेरहम नहीं हूँ।

सब की सब गजेन्द्र का मुँह देखती रह गयीं।

–  ‘वारदात’ से
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