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उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
‘मैं तुम्हारे दोनों बैल खोल ले जाऊँगा।’
होरी ने उसकी ओर विस्मय-भरी आँखों से देखा, मानो अपने कानों पर विश्वास न आया हो। फिर हतबुद्धि-सा सिर झुकाकर रह गया। भोला क्या उसे भिखारी बनाकर छोड़ देना चाहते है? दोनों बैल चले गये, तब तो उसके दोनों हाथ ही कट जायँगे।
दीन स्वर में बोला–दोनों बैल ले लोगे, तो मेरा सर्वनाश हो जायगा। अगर तुम्हारा धरम यही कहता है, तो खोल ले जाओ।
‘तुम्हारे बनने-बिगड़ने की मुझे परवा नहीं है। मुझे अपने रुपए चाहिए।’
‘और जो मैं कह दूँ, मैंने रुपए दे दिये?’
भोला सन्नाटे में आ गया। उसे अपने कानों पर विश्वास न आया। होरी इतनी बड़ी बेईमानी कर सकता है, यह सम्भव नहीं।
उग्र होकर बोला–अगर तुम हाथ में गंगाजली लेकर कह दो कि मैंने रुपए दे दिये, तो सबर कर लूँ।
‘कहने का मन तो चाहता है, मरता क्या न करता; लेकिन कहूँगा नहीं।’
‘तुम कह ही नहीं सकते।’
‘हाँ भैया, मैं नहीं कह सकता। हँसी कर रहा था।
एक क्षण तक वह दुविधा में पड़ा रहा। फिर बोला–तुम मुझसे इतना बैर क्यों पाल रहे हो भोला भाई! झुनिया मेरे घर में आ गयी, तो मुझे कौन-सा सरग मिल गया। लड़का अलग हाथ से गया, दो सौ रुपया डाँड़ अलग भरना पड़ा। मैं तो कहीं का न रहा। और अब तुम भी मेरी जड़ खोद रहे हो। भगवान् जानते हैं, मुझे बिलकुल न मालूम था कि लौडा क्या कर रहा है। मैं तो समझता था, गाना सुनने जाता होगा। मुझे तो उस दिन पता चला, जब आधी रात को झुनिया घर में आ गयी। उस बखत मैं घर में न रखता, तो सोचो, कहाँ जाती? किसकी होकर रहती?
झुनिया बरौठे के द्वार पर छिपी खड़ी यह बातें सुन रही थी। बाप को अब वह बाप नहीं, शत्रु समझती थीं। डरी, कहीं होरी बैलों को दे न दें। जाकर रूपा से बोली–अम्माँ को जल्दी से बुला ला। कहना, बड़ा काम है, बिलम न करो।
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