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चन्द्रकान्ता सन्तति - 5

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8403
आईएसबीएन :978-1-61301-030-3

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चन्द्रकान्ता सन्तति 5 पुस्तक का ई-संस्करण...

तेरहवाँ बयान


दरबार बर्खास्त होने के बाद जब महाराज सुरेन्द्रसिंह, जीतसिंह, बीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, गोपालसिंह और देवीसिंह एकान्त में बैठे तो यों बातचीत होने लगी—

सुरेन्द्र : ये दोनों नकाबपोश तो विचित्र तमाशा कर रहे हैं। मालूम होता है कि इन मामलों की सबसे ज्यादे खबर इन्हीं लोगों को है।

जीतसिंह : बेशक ऐसा ही है।

बीरेन्द्र : जिस तरह इन दोनों ने तीन दफे तीन तरह की सूरतें दिखायीं इसी तरह मालूम होता है और भी कई दफे कई तरह की सूरत दिखायेंगे।

गोपाल : निःसन्देह ऐसा ही होगा। मैं समझता हूँ कि या तो ये लोग अपनी सूरत बदलकर आया करते हैं, या दोनों केवल दो ही नहीं हैं, और भी कई आदमी है, जो पारी-पारी से आकर लोगों को ताज्जुब में डालते हैं; और डालेंगे।

तेज : मेरा भी यह खयाल है। भूतनाथ के दिल में भी खलबली पैदा हो रही हैं। उसके चेहरे से मालूम होता था कि वह इन लोगों का पता लगाने के लिए परेशान हो रहा है।

देवी : भूतनाथ का ऐसा विचार कोई ताज्जुब की बात नहीं! जब हम लोग उनका हाल जानने के लिए व्याकुल हो रहे हैं, तब भूतनाथ का क्या कहना है!

सुरेन्द्र : इन लोगों ने मुकद्दमे की उलझन खोलने का ढंग तो अच्छा निकाला है, मगर यह मालूम करना चाहिए कि इन मामलों से इनका क्या सम्बन्ध है?

देवी : अगर आज्ञा हो तो मैं उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूँ?

बीरेन्द्र : कहीं ऐसा न हो कि पीछा करने से ये लोग बिगड़ जायँ और फिर यहाँ आने का इरादा न करें।

गोपाल : मेरे खयाल से तो उन लोगों को इस बात का रंज न होगा कि लोग उनका हाल जानने के लिए पीछा कर रहे हैं, क्योंकि उन लोगों ने काम ही ऐसा उठाया है कि सैकड़ों आदमियों को ताज्जुब हो और सैकड़ों ही उनका पीछा भी करें। इस बात को वे लोग खूब ही समझते होंगे और इस बात का भी उन्हें विश्वास होगा कि भूतनाथ उनका हाल जानने के लिए सबसे ज्यादे कोशिश करेगा।

बीरेन्द्र : ठीक है और इसी खयाल से वे लोग हर वक्त चौंकन्ने भी रहते हों तो कोई ताज्जुब नहीं।

जीतसिंह : जरूर चौकन्ने रहते होंगे और ऐसी अवस्था में पता लगाना भी कठिन होगा।

गोपाल : जो हो, मगर मेरी इच्छा तो यही है कि स्वयं उनका हाल जानने के लिए उद्योग करूँ।

सुरेन्द्र : अगर उनके मामले में पता लगाने की इच्छा ही है तो क्या तुम्हारे यहाँ ऐयारों की कमी हैं, जो तुम स्वयं कष्ट करोगे? तेजसिंह, देवीसिंह, पण्डित बद्रीनाथ या और जिसे चाहों इस काम पर मुकर्रर करो।

गोपाल : जो आज्ञा, देवीसिंह कहते ही हैं, तो इन्हीं को यह काम सुपुर्द किया जाय।

सुरेन्द्र : (देवीसिंह से) अच्छा जाओ तुम ही इस काम में उद्योग करो, देखें क्या खबर लाते हो।

देवीसिंह : (सलाम करके) जो आज्ञा।

गोपाल : और इस बात का भी पता लगाना कि भूतनाथ उनका पीछा करता है, या नहीं!

देवी : जरूर पता लगाऊँगा।

इस बात से छुट्टी पाने बाद थोड़ी देर तक और बातें हुईं, इसके बाद महाराज आराम करने चले गये तथा और लोग भी अपने ठिकाने पधारे।

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