लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता सन्तति - 4

चन्द्रकान्ता सन्तति - 4

देवकीनन्दन खत्री

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :256
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8402
आईएसबीएन :978-1-61301-029-7

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

354 पाठक हैं

चन्द्रकान्ता सन्तति - 4 का ई-पुस्तक संस्करण...

दसवाँ बयान


अब हम अपने पाठकों को फिर उसी सफर में ले चलते हैं, जिसमें चुनार जानेवाले राजा बीरेन्द्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। पाठकों को याद होगा कि कमबख्त मनोरमा ने तिलिस्मी खंजर से किशोरी, कामिनी और कमला का सिर काट डाला और खुशी भरी आवाज से कुछ कह रही थी कि पीछे की तरफ से आवाज आयी, ‘‘नहीं नहीं, ऐसा न हुआ है न होगा!’’

आवाज देने वाला भैरोसिंह था, जिसे मनोरमा के खोज निकालने का काम सुपुर्द किया गया था। वह मनोरमा की खोज में चक्कर लगाता और टोह लेता हुआ उसी जगह जा पहुँचा था, मगर उसे इस बात का बड़ा ही अफसोस था कि उन तीनों का सर कट जाने के बाद, वह खेमें के अन्दर पहुँचा।

हमारे ऐयार की आवाज सुनकर मनोरमा चौंकी और उसने घूमकर पीछे की तरफ देखा तो हाथ में खञ्जर लिये हुए भैरोसिंह पर निगाह पड़ी। यद्यपि भैरोसिंह पर नजर पड़ते ही वह जिन्दगी से नाउम्मीद हो गयी, मगर फिर भी उसने तिलिस्मी खंजर का वार भैरोसिंह पर किया, भैरोसिंह पहिले ही से होशियार था, और उसके पास भी तिलिस्मी खंजर मौजूद था। अस्तु, उसने अपने खंजर पर इस ढंग से मनोरमा के खंजर का वार रोका कि मनोरमा की कलाई भैरोसिंह के खंजर पर पड़ी और वह कटकर तिलिस्मी खंजर सहित दूर जा गिरी। भैरोसिंह ने इतने पर ही सब्र न करके उसी खंजर से मनोरमा की एक टाँग काट डाली और इसके बाद जोर से चिल्लाकर पहरेवालों को आवाज दी।

पहरेवाले तो पहिले ही से बेहोश पड़े हुए थे, मगर भैरोसिंह की आवाज ने लौंडियों को होशियार कर दिया और बात-की-बात में बहुत सी लौंडियाँ उस खेमें के अन्दर आ पहुँची, जो वहाँ की अवस्था देखकर जोर-जोर से रोने और चिल्लाने लगीं।

थोड़ी देर में उस खेमे के अन्दर बाहर भीड़ लग गयी। जिधर देखिए उधर मशाल जल रही है, और आदमी-पर-आदमी टूटा पड़ता है। राजा बीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह भी उस खेमे में गये और वहाँ की अवस्था देखकर अफसोस करने लगे। तेजसिंह ने हुक्म दिया कि तीनों लाशें उसी जगह ज्यों-की-त्यों रहने दी जायँ और मनोरमा (जोकि चेहरा धुल जाने के कारण पहिचानी जा चुकी थी) वहाँ से उठवाकर दूसरे खेमे में पहुँचायी जाय, उसके जख्म पर पट्टी लगायी जाय और उस पर सख्त पहरा रहे। इसके बाद भैरोसिंह और तेजसिंह को साथ लिये हुए राजा बीरेन्द्रसिंह अपने खेमे में आये और बातचीत करने लगे। उस समय खेमे के अन्दर सिवाय इन तीनों के और कोई भी न था। भैरोसिंह ने अपना हाल बयान किया और कहा, ‘‘मुझे इस बात का बड़ा दुःख है कि किशोरी, कमिनी और कमला का सर कट जाने के बाद, मैं उस खेमे के अन्दर पहुँचा।’’

तेज : अफसोस की कोई बात नहीं है, ईश्वर की कृपा से हम लोगों को यह बात पहिले ही मालूम हो गयी थी कि मनोरमा हमारे लश्कर के साथ है।

भैरो : अगर यह बात मालूम हो गयी थी तो आपने इसका इन्तजाम क्यों नहीं किया और इन तीनों की तरफ से बेफिक्र क्यों रहे।

तेज : हम लोग बेफिक्र नहीं रहे, बल्कि जो कुछ इन्तजाम करना बाजिब था, किया गया। तुम यह सुनकर ताज्जुब करोगे कि किशोरी, कामिनी और कमला मरी नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा से जीती है, और लौंडी की सूरत में हरदम पास रहने पर भी मनोरमा ने धोखा खाया।

भैरो : मनोरमा ने धोखा खाया और वे तीनों जीती हैं?

तेज : हाँ, ऐसा ही है। इसका खुलासा हाल हम तुमसे कहते हैं, मगर पहिले यह बताओ कि तुमने मनोरमा को कैसे पहिचाना? हम तो कई दिनों से पहिचानने की फिक्र में लगे हुए थे, मगर पहिचान न सके, क्योंकि मनोरमा के कब्जे में तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अँगूठी देखने की नीयत से निगाह रखते थे।

भैरो : मैं उसका पता लगाता हुआ इसी लश्कर में आ पहुँचा था। उस समय टोह लेता हुआ, जब मैं किशोरी के खेमे के पास पहुँचा तो पहरे के सिपाही को बेहोश और खेमे का पर्दा हटा हुआ देखा मुझे किसी दुश्मन के अन्दर जाने का गुमान हुआ और मैं भी उसी राह से खेमे के अन्दर चला गया। जब वहाँ की अवस्था देखी, और उसके मुँह से निकली हुई बातें सुनीं, तब शक हुआ कि यह मनोरमा है, मगर निश्चय तब ही हुआ, जब उसका चेहरा साफ किया गया और आपने भी पहिचाना। अब आप कृपा कर यह बताइए कि किशोरी, कामिनी और कमला क्योंकर जीती बचीं और जो तीनों मारी गयीं वे कौन थीं?

तेज : हमें इस बात का पता लग चुका था कि भेष बदले हुए मनोरमा हमारे लश्कर के साथ है, मगर जैसाकि तुमसे कह चुके हैं, उद्योग करने पर भी हम उसे पहिचान न सके। एक दिन हम और राजा साहब सन्ध्या के समय टहलते हुए खेमे से दूर चले गये, और एक छोटे टीले पर चढ़कर अस्त होते हुए सूर्य की शोभा देखने लगे। उस समय कृष्णाजिन्न का भेजा हुआ एक सवार हमारे पास आया और उसने एक चीठी राजा साहब के हाथ में दी, राजा साहब ने चीठी पढ़कर मुझे दिया। उसमें लिखा हुआ था–‘‘मुझे इस बात का पूरा-पूरा पता लग चुका है कि कई सहायकों को साथ लिये और भेष बदले हुए मनोरमा आपके लश्कर में मौजूद है और उसके अतिरिक्त और भी कई दुष्ट किशोरी और कमिनी के साथ दुश्मनी किया चाहते हैं। इसलिए मेरी राय है कि बचाव तथा दुश्मनों को धोखा देने के लिए किशोरी, कामिनी और कमला को कुछ दिन तक छिपा देना चाहिए और उनकी जगह सूरत बदलकर दूसरी लौंडियों को साथ रख देना चाहिए। इस काम के लिए मेरा एक तिलिस्मी मकान जो, आपके रास्ते में ही कुछ दूर हटकर पड़ेगा, मुनासिब है, और मैंने इस काम के लिए वहाँ पूरा इन्तजाम भी कर दिया है। लौंडियाँ भी सूरत बदलने और खिदमत करने से लिए भेज दी हैं, क्योंकि आपकी लौड़ियाँ की सूरत बदलना ठीक न होगा और लश्कर में लौंडियों की कमी से लोगों को शक हो जायगा। अस्तु, आप बहुत जल्द इन्तजाम करके उन तीनों को वहाँ पहुँचाइए मैं भी इन्तजाम करने के लिए पहिले ही से उस मकान में जाता हूँ–’’ इत्यादि। इसके बाद उस मकान का पूरा-पूरा पता लिख कर अपना दस्तखत एक निशान के साथ कर दिया था, जिसमें हम लोगों की चीठी लिखनेवाले पर किसी तरह का शक न हो, और उस मकान के अन्दर जाने की तरकीब भी लिख दी थी।

कृष्णाजिन्न की राय को राजा साहब ने स्वीकार किया और पत्र का उत्तर देकर वह सवार बिदा कर दिया गया। रात के समय किशोरी, कामिनी और कमला को ये बातें समझा दी गयीं, और उन्होंने उसी दुष्ट मनोरमा की जुबानी दोपहर के बाद कहला भेजा कि हमने सुना है कि यहाँ से थोड़ी ही दूर पर कोई तिलिस्मी मकान है, यदि आप चाहें तो हम लोग उस मकान की सैर कर सकती हैं, इत्यादि। मतलब यह कि इसी बहाने से मैं खुद उन तीनों को रथ पर सवार कराके उस मकान में ले गया और कृष्णाजिन्न को वहाँ मौजूद पाया। उसने अपने हाथ से अपनी तीन लौंडियों को किशोरी, कामिनी और कमला बना हमारे रथ पर सवार कराया और हम उन्हें लेकर इस लश्कर में लौट आये। तुम जानते ही हो कि कृष्णाजिन्न कितना बड़ा बुद्धिमान और होशियार तथा हम लोगों का दोस्त आदमी है।

भैरो : बेशक, उनकी हिफाजत में किशोरी, कामिनी और कमला को किसी तरह की तकलीफ नहीं हो सकती और यह आपने बड़ी खुशी की बात सुनायी, मगर मैं समझता हूँ कि इन भेदों को अभी आप गुप्त रक्खेंगे और यह बात जाहिर न होने देंगे कि वे तीनों जो मारी गयी हैं, वास्तव में किशोरी, कामिनी और कमला न थी।

तेज : नहीं नहीं, अभी इस भेद का खुलना उचित नहीं है। सभों को यही मालूम रहना चाहिए कि वास्तव में किशोरी, कामिनी और कमला मारी गयी। अच्छा अब दो-चार बातें तुम्हें और कहनी हैं, वह भी सुन लो।

भैरो : जो आज्ञा।

तेज : कृष्णाजिन्न तो काम-काजी आदमी ठहरा और वह ऐसे-ऐसे बखेड़ों में फँसा है कि उसे दम मारने की फुर्सत नहीं है।

भैरो : निःसन्देह ऐसा ही है। इतना काम जो वे करते हैं सो भी उन्हीं की बुद्धिमानी का नतीजा है, दूसरा नहीं कर सकता।

तेज : अस्तु, कृष्णाजिन्न तो ज्यादे दिनों तक उस मकान में रह नहीं सकता, जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला है। वह अपने ठिकाने चला गया होगा। अब तुम भी इसी समय उस मकान की तरफ चले जाओ और जब तक हमारा दूसरा हुक्म न पहुँचे या कोई आवश्यक काम न आ पड़े, तब तक उन तीनों के साथ रहो, हम उस मकान का पता तथा उसके अन्दर जाने की तरकीब तुम्हें बता देते हैं।

भैरो : जो आज्ञा, मैं अभी जाने के लिए तैयार हूँ।

तेजसिंह ने उस मकान का पूरा-पूरा हाल भैरोसिंह को बता दिया और भैरोसिंह उसी समय अपने बाप का चरण छूकर बिदा हुए।

भैरोसिंह के जाने बाद सवेरा होने पर एक ब्राह्मण द्वारा नकली किशोरी, कामिनी और कमला के मृत देह की दाह-क्रिया कर दी गयी। इसके पहिले ही लश्कर में जितने पढ़े-लिखे ब्राह्मण थे, सभी को बटोरकर तेजसिंह ने यह व्यवस्था करा ली थी कि इन तीनों का कोई नातेदार यहाँ मौजूद नहीं है, इसलिए किसी ब्राह्मण द्वारा इनकी क्रिया करा देनी चाहिए। इस काम से छुट्टी पाने बाद लश्कर कूच कर गया और सब कोई धीरे-धीरे चुनारगढ़ की तरफ रवाना हुए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai