मूल्य रहित पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता सन्तति - 4 चन्द्रकान्ता सन्तति - 4देवकीनन्दन खत्री
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चन्द्रकान्ता सन्तति - 4 का ई-पुस्तक संस्करण...
बारहवाँ बयान
हम ऊपर लिख आये हैं कि इन्द्रदेव ने भूतनाथ को अपने मकान से बाहर जाने न दिया और अपने आदमियों को यह ताकीद करके कि भूतनाथ को हिफाजत और खातिरदारी के साथ रक्खें, रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हो गया।
यद्यपि भूतनाथ इन्द्रदेव के मकान में रोक लिया गया और वह भी उस मकान से बाहर जाने का रास्ता न जानने के कारण लाचार और चुप हो रहा, मगर समय और आवश्यकता ने वहाँ उसे चुपचाप बैठने न दिया और मकान से बाहर निकलने का मौका उसे मिल ही गया।
जब इन्द्रदेव रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हो गया, उसे दूसरे दिन दोपहर के समय सर्यूसिंह जो इन्द्रदेव का बड़ा विश्वासी ऐयार था, भूतनाथ के पास आया और बोला, ‘क्यों भूतनाथ, तुम चुपचाप बैठे क्या सोच रहे हो?’’
भूतनाथ : बस अपनी बदनसीबी पर रोता और झख मरता हूँ, मगर इसके साथ ही इस बात को सोच रहा हूँ कि आदमी को दुनिया में किस ढंग से रहना चाहिए।
सर्यूसिंह : क्या तुम अपने को बदनसीब समझते हो?
भूतनाथ : क्यों नहीं! तुम जानते हो कि वर्षों से मैं राजा बीरेन्द्रसिंह का काम कैसी ईमानदारी और नेकनीयती के साथ कर रहा हूँ? और क्या यह बात तुमसे छिपी हुई है कि उस सेवा का बदला आज मुझे क्या मिल रहा है?
सर्यूसिंह : (पास बैठकर) मैं सबकुछ जानता हूँ, मगर भूतनाथ, मैं फिर भी यह कहने से बाज न आऊँगा कि आदमी को कभी हताश न होना चाहिए और हमेशा बुरे कामों की तरफ से अपने दिल को रोककर, नेक काम में तन-मन-धन से लगे रहना चाहिए। ऐसा करनेवाला निःसन्देह सुख भोगता हैं, चाहें बीच-बीच में उसे थीड़ी-बहुत तकलीफ भी क्यों न उठानी पड़े। अस्तु, आजकल के दुःखों से तुम हताश मत हो जाओ और राजा बीरेन्द्रसिंह तथा उनकी तरह सज्जन लोगों के साथ नेकी करने से अपने दिल को मत रोको। तुम तो ऐयार हो और ऐयार में भी नामी ऐयार, फिर भी दो-चार दुष्टों की अनोखी कार्रवाइयों से आ पड़नेवाली आफतों को न सहकर उदास हो जाओ तो बड़े आश्चर्य की बात है।
भूतनाथ : नहीं मेरे दोस्त मैं हताश होनेवाला आदमी नहीं हूँ, मैं तो केवल समय का हेर-फेर देखकर अफसोस कर रहा हूँ। निःसन्देह मुझसे दो एक काम बुरे हो गये और उसका बदला भी मैं पा चुका हूँ, मगर फिर भी मेरा दिल यह कहने से बाज नहीं आता कि तेरे माथे से कलंक का टीका अभी तक साफ नहीं हुआ, अतएव तू नेकी करता जा, और भूलता जा।
सर्यूसिंह : शाबाश, मैं केवल तुम्हीं को नहीं, बल्कि तुम्हारे दिल को भी अच्छी तरह जानता हूँ और वे बाते भी मुझसे छिपी हुई नहीं हैं, जिनका इलजाम तुम पर लगाया गया है। यद्यपि मैं एक ऐसे सरदार का ऐयार हूँ, जो किसी के नेक-बद से सरोकार नहीं रखता और इस स्थान को देखनेवाला कह सकता है कि वह दुनिया के पर्दे के बाहर रहता है, मगर फिर भी मैं काम ज्यादे न होने के सबब से घूमता-फिरता और नामी ऐयारों की कार्रवाइयों को देखा-सुना करता हूँ, और यही सबब है कि मैं उन भेदों को भी कुछ जानता हूँ, जिसका इलजाम तुम पर लगाया गया है।
भूतनाथ : (आश्चर्य से) क्या तुम उन भेदों को जानते हो?
सर्यूसिंह : बखूबी तो नहीं, मगर कुछ-कुछ।
भूतनाथ : तो मेरे दोस्त, तुम मेरी मदद क्यों नहीं करते? तुम मुझे इस आफत से क्यों नहीं छुड़ाते। आखिर, हम-तुम एक ही पाठशाला के पढ़े-लिखे हैं, क्या लड़कपन की दोस्ती पर ध्यान देते तुम्हें शर्म आती है या क्या तुम इस लायक नहीं हो?
सर्यूसिंह : (हँसकर) नहीं नहीं, ऐसा खयाल न करो, मैं तुम्हारी मदद जरूर करूँगा, अभी तक तो तुम्हें किसी से मदद लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी थी, और जब आवश्यकता आ पड़ी है तो मदद करने के लिए हाजिर भी हो गया हूँ।
भूतनाथ : (मुस्कुराकर) तब तो मुझे खुशी होनी चाहिए, मगर जब तक तुम्हारा मालिक रोहतासगढ़ से लौटकर न आ जाय, तब तक हम लोग कुछ भी न कर सकेंगे।
सर्यूसिंह : क्यों न कर सकेंगे।
भूतनाथ : इसलिए कि तुम्हारा मालिक मुझे यहाँ कैद कर गया है। मैं इसे कैद ही समझता हूँ, जबकि यहाँ से बाहर निकलने की आज्ञा नहीं है।
सर्यूसिंह : यह कोई बात नहीं है, अगर जरूरत आ पड़े तो मैं तुम्हें इस मकान के बाहर कर दूँगा, चाहे बाहर होने का रास्ता अपने मालिक के नियमानुसार न बताऊँ।
भूतनाथ : (प्रसन्नता से हाथ उठाकर) ईश्वर तू धन्य है! अब आशा-लता ने, जिसमें सुन्दर और सुगन्धित फूल लगे हुए हैं, मुझे फिर घेर लिया। (सर्यू से) अच्छा दोस्त, तो अब बताओ कि मुझे क्या करना चाहिए?
सर्यूसिंह : सबके पहिले मनोरमा को अपने कब्जे में लाना चाहिए।
भूतनाथ : (कुछ सोचकर) ठीक कहते हो, मेरी भी एक दफे यही इच्छा हुई थी, मगर क्या तुम इस बात को नहीं जानते कि शिवदत्त, मनोरमा और...
सर्यूसिंह : (बात काटकर) मैं खूब जानता हूँ कि शिवदत्त, माधवी और मनोरमा को कमलिनी के कैदखाने से निकल भागने का मौका मिला, और वे लोग भाग गये।
भूतनाथ : तब?
सर्यूसिंह : मगर आज एक खबर ऐसी सुनने में आयी है, जो आश्चर्य और उत्कण्ठा बढ़ानेवाली है और हम लोगों को चुपचाप बैठे रहने की आज्ञा नहीं देती।
भूतनाथ : वह क्या है?
सर्यूसिंह : यही कि कमबख्त मायरानी की मदद पाकर शिवदत्त, माधवी और मनोरमा ने जो पहिले से ही अमीर थे, अपनी ताकत बहुत बढ़ा ली और सबके पहिले उन्होंने यह काम किया कि राजा दिग्विजयसिंह के लड़के कल्याणसिंह को कैद से छुड़ा लिया, जिसकी खबर राजा बीरेन्द्रसिंह को अभी तक नहीं हुई और यह भी तुम जानते ही हो कि रोहतासगढ़ के तहखाने का भेद कल्याणसिंह उतना ही जानता है, जितना उसका बाप जानता था।
भूतनाथ : बेशक बेशक, अच्छा तब?
सर्यूसिंह : अब उन लोगों ने यह सुनकर कि राजा बीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह इत्यादि ऐयार तथा किशोरी, कामिनी, कमलिनी, कमला और लाडिली वगैरह सभी रोहतासगढ़ में मौजूद हैं, गुप्त रीति से रोहतासगढ़ पहुँचने का इरादा किया है।
भूतनाथ : बेशक कल्याणसिंह उन लोगों को तहखाने की गुप्त राह से किले के अन्दर ले जा सकता है और इसका नतीजा निःसन्देह बहुत बुरा होगा।
सर्सूसिंह : मैं भी यही सोचता हूँ, तिस पर मजा यह है कि वे लोग अकेले नहीं है, बल्कि हजार फौजी सिपाहियों को भी उन लोगों ने अपना साथी बनाया है।
भूतनाथ : और रोहतासगढ़ के तहखाने में इससे दूने आदमी भी हों तो सहज ही में समा सकते हैं, मगर मेरे दोस्त, यह खबर तुमने कहाँ से और क्योंकर पायी?
सर्यूसिंह : मेरे चेलों ने जो प्रायः बाहर घूमा करते हैं, यह खबर मुझे सुनायी है।
भूतनाथ : तो क्या यह मालूम नहीं हुआ कि शिवदत्त, माधवी, मनोरमा और कल्याणसिंह तथा उनके साथी किस राह से जा रहे हैं, और कहाँ है?
सर्यूसिंह : हाँ, यह भी मालूम हुआ है, वे लोग बराबर घाटी की राह से और जंगल-ही-जंगल जा रहे हैं।
भूतनाथ : (कुछ देर तक गौर करके) मौका तो अच्छा है!
सर्यूसिंह : बेशक अच्छा है।
भूतनाथ : तब?
सर्यूसिंह : चलो हम-तुम दोनों मिलकर कुछ करें!
भूतनाथ : मैं तैयार हूँ, मगर इस बात को सोच लो कि ऐसा करने पर तुम्हारा मालिक रंज तो न होगा!
सर्यूसिंह : सब सोचा-समझा है, हमारा मालिक भी रोहतासगढ़ ही गया हुआ है और वह भी राजा बीरेन्द्रसिंह का पक्षपाती है।
भूतनाथ : खैर, तो अब विलम्ब करना अपने अमूल्य समय को नष्ट करना है। (ऊँची साँस लेकर) ईश्वर न करे कि शिवदत्त के हाथ कहीं किशोरी लग जाय, अगर ऐसा ही हुआ तो अबकी दफे वह बेचारी कदापि न बचेगी।
सर्यूसिंह : मैं भी यही सोच रहा हूँ, अच्छा तो अब तैयार हो जाओ, मगर मैं नियामानुसार तुम्हारी आँखों पर पट्टी बाँधकर बाहर ले जाऊँगा।
भूतनाथ : कोई चिन्ता नहीं। हाँ, यह तो कहो कि मेरे ऐयारी के बटुए में कई मसालों की कमी हो गयी है, क्या तुम उसे पूरा कर सकते हो?
सर्यूसिंह : हाँ हाँ, जिन-जिन चीजों की जरूरत हो ले लो, यहाँ किसी बात की कमी नहीं है।
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