मूल्य रहित पुस्तकें >> चन्द्रकान्ता सन्तति - 3 चन्द्रकान्ता सन्तति - 3देवकीनन्दन खत्री
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चन्द्रकान्ता सन्तति 3 पुस्तक का ई-संस्करण...
तीसरा बयान
इस तालाब के बीचवाले तिलिस्मी मकान में कमलिनी दस लौंडियों के साथ रहती थी। नौकर और सिपाही भी उसके साथ बहुत थे मगर उनके रहने के लिए स्थान इस मकान में नहीं था, वे लोग काम-काज किया करते थे और समय पड़ने पर जान देने के लिए इकट्ठे हो जाते थे, मगर कमलिनी और तारा को छोड़के कोई यह भी नहीं जानता था कि वे लोग कहां रहते हैं और क्या करते हैं। उन सिपाहियों में से कई तो मायारानी के कैदी हो गये थे और दो दस-बारह बचे हुए थे सो इधर-उधर घूम-फिरकर कमलिनी का काम कर रहे थे। उन्हीं बचे हुए सिपाहियों में से चार-पांच सिपाही इस समय मकान में मौजूद थे जो किसी काम के सम्बन्ध में तारा के पास आये थे और दुश्मनों का हंगामा देखकर बाहर न जा सके थे। कमलिनी की लौंडियाँ जितनी थीं वे सब जमानिया से कमलिनी के साथ उस समय आई थीं जब मायारानी से लड़कर कमलिनी अलग हो गयी थी। इन लौंडियों में से एक लौंडी, जिसका नाम भगवती था बड़ी ही शैतान और दिल की खोटी थी। यद्यपि वह जाहिर में अपने को बहुत ही बनाये हुए रहती थी और बात-बात में खैरख्वाह जताती थी मगर वास्तव में वह ऐसी काली नागिन थी जिसके काटे का कोई मन्त्र नहीं था। उसे रुपये की लालच हद से ज्यादे थी मगर इतने दोष रहने पर भी, वह अपनी चालाकी से अपने मालिक तथा तारा को खुश रखती थी और उन दोनों के आगे अपने अवगुण जाहिर नहीं होने देती थी। यही लौंडी प्रायः कैदियों को खाना-पीना भी पहुँचाया करती थी।
कमलिनी के कैदखाने को पहले माधवी और शिवदत्त ने आबाद किया था और उसके बाद मनोरमा इस कैदखाने में आयी थी। मायारानी की सखी होने के कारण मनोरमा भगवानी को बखूबी जानती थी और इसी तरह भगवानी भी उसे अच्छी तरह पहिचानती थी। खाना-पीना पहुँचाने के लिए जब भगवानी कैदखाने में जाती तो मनोरमा उसे अपने लच्छेदार बातों में घड़ियों उलझाकर भविष्य के लिए सब्ज़बाग दिखाती और तरह-तरह की उम्मीदों से ललचाया करती यहां तक कि उसे तीन लाख रुपये की लालच दिखाकर उसने अपनी, माधवी और शिवदत्त की मदद पर राजी कर लिया। माधवी दवा-इलाज की बदौलत वहां आकर तंदुरुस्त हो गई थी।
भगवानी इस बात पर राजी हो गयी कि मौका मिलने पर कैदियों की मदद करे और जिस तरह हो कैदियों को तहखाने से बाहर निकाल दे। भगवानी ने माधवी, शिवदत्त और मनोरमा से कहा तुम लोगों को छुड़ाने के लिए मुझे बहुत-कुछ उद्योग करना पड़ेगा और तुम्हारे नौकरों तथा सिपाहियों से मिलने और उनसे कुछ काम लेने की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए उचित होगा कि तुम लोग मुझे एक परवाना लिख दो जिसमें तुम लोगों के आदमी मुझे तुम्हारा मददगार समझें और जो कुछ मैं कहूं वही करें और खर्च के लिए आवश्यकतानुसार मुझे दिया भी करें। आखिर तीनों कैदियों ने भगवानी की बात मंजूर कर ली। भगवानी मौका पाकर कलम, दवात और कागज छिपाकर तहखाने में ले गई और तीनों कैदियों से अपने मतलब की बातें लिखवा लीं।
कमलिनी के जाने बाद केवल तारा की मौजूदगी में भगवानी को अपना काम करने का बहुत अच्छा मौका मिला। उसने गुप्त रीति से कई नौकर रक्खे और उनके जरिए से माधवी, मनोरमा और शिवदत्त के आदमियों को जो छितिर-बितिर हो गये थे इकट्ठा कराया तथा इस बात से होशियार कर दिया कि तुम्हारे मालिक लोग यहाँ कैद हैं।
धीरे-धीरे बन्दोबस्त करके भगवानी ने सामान दुरुस्त कर लिया और एक दिन सुरंग की राह से तीनों कैदियों को निकालर बाहर किया। आज जो इतने दुश्मन इस मकान के घेरे हुए हैं या जो कुछ वे कर रहे हैं सब भगवानी ही की करामात है। इस समय भगवानी ही ने किशोरी, कामिनी तथा तारा को सुरंग में बन्द कर दिया है। वह यह चाहती है कि दुश्मन लोग इस मकान में घुस आवें और मनमानी चीज़ें लूट ले जाएं, मगर कीमती चीज़ें जवाहिर इत्यादि मैं पहिले ही से बटोरकर अलग रख दूँ और जब दुश्मन लोग यहाँ घुस आवें तो उन्हें लेकर चल दूँ। शिवदत्त, माधवी और मनोरमा के हाथ का लिखा हुआ परवाना मौजूद ही है अस्तु, कमलिनी के दुश्मनों में मुझे कोई भी नहीं रोक सकता। यह भगवानी का हाल थोड़ा-सा हाल इस जगह इस लिए लिख दिया कि बीती बहुत-सी बातें समझने में हमारे पाठकों को कठिनाई न पड़े।
किशोरी, कामिनी और तारा को सुरंग में बन्द करके जब भगवानी कैदखाने के बाहर निकली तो कोठरी में ताला लगा दिया और ताली अपने कब्जे में कर रक्खी, इसके बाद हाथ में लालटेन लेकर मकान की छत पर चढ़ गई और लालटेन को घुमा-फिराकर दुश्मनों को इशारे-ही-इशारे में कुछ कहा। मालूम होता है कि इस इशारे की बातचीत पक्की हो चुकी थी क्योंकि लालटेन का इशारा पाते ही दुश्मनों ने खुश होकर अपना काम तेजी से करना शुरू किया अर्थात् तालाब पाटने में बहुत फुर्ती दिखाने लगे। एक दफे तो भगवानी के दिल में यह बात पैदा हुई कि चारों पुतलियों को खड़ी करके घूमते हुए चारों चक्रों को रोक दें, जिससे दुश्मन लोग यहाँ शीघ्र आ जाएं मगर तुरन्त ही उसने अपना इरादा बदल दिया। उसे यह बात सूझ गई कि यदि मैं घूमते हुए चारों चक्रों को रोक दूंगी तो कमलिनी के नौकरों को मुझ पर शक हो जायगा और फिर बना-बनाया मामला बिगड़ जाएगा।
अब कम्बख्त भगवनिया (भगवानी) इस फिक्र में लगी कि दुश्मन के घर में आने के पहिले यहाँ से अच्छी-अच्छी कीमती चीज़ें बटोर ली जाएं और जब दुश्मन इस मकान में घुस आवें तो उसे लपेटकर ले चलती बनूँ क्योंकि शिवदत्त, माधवी और मनोरमा की चिट्ठियों की बदौलत, जो मेरे पास हैं, मुझे कोई भी न रोकेगा।
कमलिनी की लौंडियों और नौकरों को इस बात का गुमान भी न था कि नमकहराम भगवानी यहाँवालों को चौपट कर रही है या उसने किशोरी, तारा, और कामिनी को सुरंग में बन्द कर दिया है। वे लोग यही जानते थे कि किशोरी और कामिनी को किसी खास काम के लिए तारा अपने साथ लेती गई है।
रात बीत गयी, दूसरा दिन समाप्त हो गया, बल्कि दूसरे दिन की रात भी गुजर गई और तीसरा दिन भी आ पहुँचा। आज दुश्मनों का मनोरथ पूरा हुआ अर्थात् उन्होंने तालाब को दो तरफ से बखूबी भर दिया और उस मकान में आ पहुँचे।
लौंडियों और नौकरों की इतनी हिम्मत कहाँ कि सैकड़ों दुश्मनों का मुकाबला करते। वे लोग चुपचाप अलग हो गये और अपनी तथा अपने मालिक की बदकिस्मती पर विचार करते, तिस पर भी कई बेचारे दुश्मनों के हाथ से मारे गए। दुश्मनों ने मन-मानी लूट मचायी और जो जिसने पाया अपने बाप-दादा का माल समझ हथिया लिया। कमकीमत चीज़ या ऐसी चीज़ें जो वे लोग अपने साथ ले जाना पसन्द नहीं करते थे तोड़-फोड़, बिगाड़ या जलाकर सत्यानाश कर दी गई और घण्टे ही भर में ऐसी सफाई कर दी गई कि मानों उस मकान में कोई बसता ही न था या कोई चीज़ वहाँ थी ही नहीं। इस मकान के बाद किशोरी, कामिनी तथा तारा की खोज शुरू हुई क्योंकि दुष्टों ने जब उन तीनों को वहाँ न पाया तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और वे इस फिक्र में हुए कि भगवानी से उन तीनों का हाल पूछना चाहिए मगर भगवानी वहाँ कहाँ, वह तो अपना काम करके निकल भागी और ऐसी गायब हुई कि किसी को कुछ गुमान तक न हुआ। हाय बेचारी किशोरी, कामिनी और तारा का हाल किसी को भी मालूम नहीं, कोई भी नहीं जानता की वे बेचारियाँ कहाँ और किस आफत में पड़ी हैं या कई दिनों तक दान- पानी न मिलने के कारण जीती भी है, या मर गई। उन लौंडियों और नौकरों को भी इसका पता नहीं, इसी से वे लोग अपनी जान लेकर जिस तरफ भाग सके भाग गए और इस तिलिस्मी मकान पर दुश्मनों को पूरा-पूरा कब्जा करने दिया क्योंकि इतने आदमियों का मुकाबला करके जान देना, दूसरे उद्योग का भी रास्ता रोकना था।
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