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चन्द्रकान्ता सन्तति - 2

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8400
आईएसबीएन :978-1-61301-027-3

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चन्द्रकान्ता सन्तति 2 पुस्तक का ई-पुस्तक संस्करण...

तीसरा बयान

कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहाँ मेहमान रहे, जिसने बड़ी ख़ातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रक्खा। इस मकान में कई लौंडियाँ भी थीं, जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर के लिए न मालूम कहाँ चली जाया करती थीं।

एक दिन शाम के वक्त उस मकान की छत पर कमलिनी और कुमार बैठे बातें कर रहे थे, इसी बीच में कुमार ने पूछा–

कुमार : कमलिनी, अगर किसी तरह का हर्ज़ न हो तो इस मकान के बारे में कुछ कहो। इन पुतलियों की तरफ जो इस मकान के चारो कोनों में तथा इस छत के बीचोंबीच में है, जब मेरी निगाह पड़ती है तो ताज्जुब से अजब हालत हो जाती है।

कमलिनी : बेशक, इन्हें देख आप ताज्जुब करते होंगे। यह मकान एक तरह का छोटा-सा तिलिस्म है जो इस समय मेरे बिल्कुल मेरे आधीन है, मगर यहाँ का हाल बिना मेरे कहे थोड़े ही दिनों में आपको पूरा-पूरा मालूम हो जायगा।

कुमार : उन दोनों औरतों के साथ जो माधवी की लौंडियाँ थीं, तुमने क्या सलूक किया?

कुमार : अभी तो वे दोनों क़ैद हैं।

कुमार : माधवी का भी कुछ हाल मालूम हुआ है?

कमलिनी : उसे आपके लश्कर और रोहतासगढ़ के चारो तरफ घूमते कई दफे मेरे आदमियों ने देखा है। जहाँ तक मैं समझती हूँ, वह इस धुन में लगी है कि किसी तरह आप दोनों भाई और किशोरी उसके हाथ लगें और वह अपना बदला ले।

कुमार : अभी तक रोहतासगढ़ का कुछ हाल नहीं मालूम हुआ, न लश्कर का कोई समाचार मिला।

कमलिनी : मुझे भी इस बात का ताज्जुब है कि मेरे आदमी किस काम में फँसे हुए हैं, क्योंकि अभी तक एक ने भी लौटकर खबर न दी। (चौंककर और मैदान की तरफ देखके) मालूम होता है, इस समय कोई नया समाचार मिलेगा। मैदान की तरफ देखिए, दो आदमी एक बोझ लिये इसी तरफ आते दिखायी दे रहे हैं, ताज्जुब नहीं कि ये मेरे ही आदमियों में से हों।

कुमार : (मैदान की तरफ देखकर) हाँ ठीक है, इसी तरफ आ रहे हैं, उस गट्ठर में शायद कोई आदमी है।

कमलिनी : बेशक ऐसा ही है, (हँसकर) नहीं तो क्या मेरे आदमी माल असबाब चुराकर लावेंगे! देखिए वे दोनों कितनी तेज़ीके साथ आ रहे हैं। (कुछ अटककर) अब मैंने पहिचाना, बेशक इस गठरी में माधवी होगी।

थोड़ी देर तक दोनों आदमी चुपचाप उसी तरफ देखते रहे, जब वे लोग इस मकान के पास पहुँचे तो कमलिनी ने कुमार से कहा–

कमलिनी : मुझे आज्ञा दीजिये तो जाकर इन लोगों को यहाँ लाऊँ।

कुमार : क्या बिना तुम्हारे गये वे लोग यहाँ नहीं आ सकते?

कमलिनी : जी नहीं, जब तक मैं खुद उन्हें किश्ती पर चढ़ाकर यहाँ न लाऊँ, वे लोग नहीं आ सकते; वे क्या कोई भी नहीं आ सकता।

कुमार : क्या हरएक के लिए, जब वह इस मकान में आना या जाना चाहे तो तुम्हीं को तकलीफ करनी पड़ती है? मैं समझता हूँ कि जिस आदमी को तुम एक दफे भी किश्ती पर चढ़ाकर ले जाओगी, उसे रास्ता मालूम हो जायेगा।

कमलिनी : अगर ऐसा ही होता तो इस मकान में बेखटक क्योंकर रह सकती थी। आप ज़रा नीचे चलें, मैं इसका सबब आपको बतला देती हूँ।

कुमार खुशी-खुशी उठ खड़े हुए और कमलिनी के साथ नीचे उतर गये। कमलिनी उन्हें उस कोठरी में ले गयी, जो नहाने के काम में लायी जाती थी और जिसे कुमार देख चुके थे। उस कोठरी में दीवार के साथ एक अलमारी थी, जिसे कमलिनी ने खोला। कुमार ने देखा कि उस दीवार के साथ चाँदी का एक मुट्ठा, जो हाथभर से छोटा न होगा, लगा हुआ है। इसके सिवाय और कोई चीज़ उसमें नहीं थी।

कमलिनी : मैं पहिले ही आपसे कह चुकी हूँ कि इस तालाब में चारों ओर लोहे का जाल पड़ा हुआ है।

कुमार : हाँ, ठीक है, मगर उस रास्ते में जाल न होगा, जिधर से तुम किश्ती लेकर आती-जाती हो।

कमलिनी : ऐसा ख्याल न कीजिए, उस रास्ते में भी जाल है, मगर उसे यहाँ आने का दरवाजा कहना चाहिए, जिसकी ताली यह है। देखिए अब आप अच्छी तरह समझ जायेंगे। (उस चाँदी के मुट्ठे को कई दफे घुमाकर) अब उतनी दूर का या उस रास्ते का जाल, जिधर से किश्ती लेकर मैं आती-जाती हूँ, हट गया, मानो दरवाज़ा खुल गया, अब मैं क्या कोई भी जिसको आने-जाने का रास्ता मालूम है किश्ती पर चढ़के आ-जा सकता है। जब मैं इसको उल्टा घुमाऊँगी तो वह रास्ता बन्द हो जायेगा अर्थात् वहाँ भी जाल फैल जायेगा, फिर किश्ती आ नहीं सकती।

कुमार : (हँसकर) बेशक यह एक अच्छी बात है।

इसके बाद कमलिनी किश्ती पर सवार होकर तालाब के बाहर गयी और उन दोनों आदमियों को गठरी सहित सवार कराके मकान में ले आयी तथा तालाब में आने का रास्ता उसी रीति से जैसे कि हम ऊपर लिख चुके हैं, बन्द कर दिया। इस समय यहाँ कई लौंडियाँ भी मौजूद थीं, उन्होंने कमलिनी के इशारे से छत के ऊपर रोशनी का बन्दोबस्त कर दिया और सबकोई छत के ऊपर चले गये। कुमार के पास ही कमलिनी गलीचे पर बैठ गयी और वे दोनों आदमी भी गठरी सामने रखकर बैठ गये। इस छत की ज़मीन चिकने पत्थर की बहुत साफ-सुथरी बनी हुई थी, अगर नज़ाकत की तरफ ख्याल न किया जाये तो फ़र्श या बिछावन बिछाकर वहाँ बैठने की कोई ज़रूरत न थी।

कमलिनी : कुमार देखिए, इन दोनों आदमियों को मैंने माधवी को गिरफ़्तार करने भेजा था, मालूम होता है कि ये लोग अपना काम पूरा कर आये हैं और इस गठरी में शायद माधवी ही को लाये हैं। (दोनों आदमियों की तरफ़ देखकर) क्योंजी, माधवी ही है या किसी दूसरे को लाये हो?

एक : जी माधवी को ही लाये हैं।

कमलिनी : गठरी खोलो, ज़रा इसकी सूरत देखूँ।

उन दोनों ने गठरी खोली, कमलिनी और कुमार ने बड़े चाव से माधवी की सूरत देखी, परन्तु यकायक कमलिनी चौंकी और बोली, "क्या यह जख़्मी है?"

एक : जी हाँ, मुझे उम्मीद नहीं कि इसकी जान बचेगी क्योंकि चोट भारी खायी है।

कुमार : इसे किसने जख़्मी किया है।

एक : किसी औरत ने रोहतासगढ़ के तिलिस्मी तहख़ाने में इसे चोट पहुंचायी है।

कुमार : (कमलिनी की तरफ देखकर) क्या रोहतासगढ़ में कोई तिलिस्मी तहखाना भी है?

कमलिनी : जी हाँ, पर उसका भेद बहुत आदमियों को मालूम नहीं है, बल्कि जहाँ तक मैं समझती हूँ वहाँ का राजा दिग्विजयसिंह भी पूरा-पूरा हाल न जानता होगा। वहाँ का मामला भी बड़ा ही विचित्र है, किसी समय मैं आपसे उसका हाल कहूँगी।

एक : मगर अब उस तहख़ाने की रंगत बदल गयी।

कमलिनी : सो क्या?

एक : (कुमार की तरफ इशारा करके) आपके ऐयारों ने उसमें अपना दखल कर लिया, बल्कि ऐसा कहना चाहिए कि रोहतासगढ़ ही ले लिया।

कमलिनी : (कुमार की तरफ देखकर) मुबारक हो, खबर अच्छी आयी है।

कुमार : बेशक, इस खबर ने मुझे खुश कर दिया। ईश्वर करे, तुम्हारी ताराभी जल्द आ जाये और किशोरी का कुछ हाल मालूम हो। (माधवी को गौर से देख और चौंककर) यह क्या? माधवी की दाहिनी कलाई दिखायी नहीं देती!

कमलिनी : (हँसकर) इसका हाल आपको नहीं मालूम?

कुमार : कुछ नहीं।

कमलिनी : पूरा हाल तो मुझे भी नहीं मालूम, मगर इतना सुना है कि कहीं गयाजी में इससे और इसके दीवान अग्निदत्त की लड़की कामिनी से लड़ाई हो गयी थी। उसी लड़ाई में यह अपनी दाहिनी कलाई खो बैठी। यह भी सुनने में आया है कि यह लड़ाई उसी मकान में हुई थी, जिसमें आप लोग रहते थे और इसमें कमला भी शामिल थी।

कमलिनी की यह बात सुनकर कुमार को वे ताज्जुब की बातें याद आ गयीं, जो बीमारी की हालत में गयाजी में महल के अन्दर कई दफे रात के समय देखने में आयी थीं और जबकि अन्त में कोठरी के अन्दर एक लाश और औरत की कलाई पायी गई थी।

कुमार : हाँ अब याद आया, वह मामला भी बड़ा ही विचित्र हुआ था, अभी तक उसका ठीक-ठीक पता न लगा।

कमलिनी : क्या हुआ था, ज़रा मैं भी सुनूँ?

कुमार ने वह सब हाल कहा और जोकुछ देखने और सुनने में आया था, वह भी बताया।

कमलिनी : कमला से मुलाकात हो तो कुछ और सुनने में आवे (दोनों आदमियों की तरफ देखकर) पहिले माधवी को यहाँ से ले जाओ, लौंडियों के हवाले करो और कह दो इसे कैदख़ाने में रक्खें और होश में लाकर इसका इलाज करें, इसके बाद आओ तो तुम्हारी जुबानी वहाँ का सब हाल सुनें। शाबाश, तुम लोगों ने बेशक अपना काम पूरा किया, जिससे मैं बहुत ही खुश हूँ!

"बहुत अच्छा" कहकर दोनों आदमी माधवी को वहाँ से उठाकर नीचे ले गये और इधर कमलिनी और कुमार में बातचीत होने लगी।

कमलिनी : (मुस्कुराकर) लीजिए आपकी मुराद पूरी हुआ चाहती है, पहले-पहिल यह खुशशबरी मेरे ही सबब से आपको मिली है, सबसे भारी इनाम मुझीको मिलना चाहिए।

कुमार : बेशक, ऐसी ही बात है, मेरे पास कोई ऐसी चीज़ तो नहीं है, जो तुम्हारी नज़र के लायक हो, ख़ैर, इसके बदले में मैं खुद अपने को तुम्हारे हाथ में देता हूँ।

कमलिनी : वाह, क्या ख़ूब!

कुमार : सो क्यो?

कमलिनी : आपको अपने बदन पर अख्तियार ही क्या है, यह तो किशोरी की मिलकियत है!

कुमार लाजवाब हो गये और हँसकर चुप हो रहे। कमलिनी बड़ी ही खूबसूरत थी, इसके साथ-ही-साथ उसकी अच्छी चाल-चलन, मुरौवत, अहसान और नेकियों ने कुमार को अपना ताबेदार बना लिया था। उसकी एक-एक बात पर कुमार प्रसन्न होते और दिल में बराबर उसकी तारीफ़ करते थे।

कुमार : कमलिनी, मैं तुमसे एक बात पूछता हूँ मगर ईश्वर के लिए सच-सच जवाब देना, बात बनाकर टालने की सही नहीं।

कमलिनी : कहिए तो सही क्या बात है? रंग, बेढंग मालूम होता है!

कुमार : अगर सच जवाब देने का वायदा करो तो पूछूँ नहीं तो व्यर्थ मुँह क्यों दुखाऊँ!

कमलिनी : आपकी नज़ाकत तो औरतों से भी बढ़ गयी, जरा-सी बात कहने में मुँह दुखा जाता है, दम फूलने लगता है। ख़ैर, पूछिए, मैं वादा करती हूँ कि सच्चा जवाब दूँगी, अगर कहिए तो काग़ज़ पर लिख दूँ!

कुमार : (मुस्कुराकर) यह तो तुम वादां कर चुकी हो कि अपना हाल पूरा-पूरा मुझसे कहोगी, मगर इस समय मैं तुमसे केवल इतना ही पूछता हूँ कि तुम्हारा कोई वली, वारिस भी है या नहीं! तुम्हारे व्यवहार से स्वतन्त्रता मालूम होती है और यह भी जाना जाता है कि तुम कुँआरी हो।

कमलिनी : यह सवाल, जवाब देने योग्य नहीं है, (मुस्कुराकर) परन्तु क्या किया जाय वादा करके चुप रहना भी मुनासिब नहीं। वास्तव में मैं स्वतन्त्र हूँ। कुँआरी तो हूँ परन्तु शीघ्र ही मेरी शादी होनेवाली है।

कुमार : कब और कहाँ?

कमलिनी : यह दूसरा सवाल है, इसका सच्चा जवाब देने के लिए मैंने वादा नहीं किया है, इसलिए आप इसका उत्तर न पा सकेंगे।

कुमार : अगर इसका भी जवाब दो तो क्या कोई हर्ज़ है?

कमलिनी : हाँ हर्ज़ है, बल्कि नुकसान है।

कुमार चुप हो रहे और ज़िद करना मुनासिब न जाना, मगर यह सुनकर कि 'शीघ्र ही मेरी शादी होनेवाली है', कुमार को कुछ रंज हुआ। क्यों रंज हुआ? इसमें कुमार की हानि ही क्या थी? क्या कुछ दूसरा इरादा था? नहीं-नहीं, कुमार यह नहीं चाहते थे कि हम ही इससे शादी करें, वे किशोरी के सच्चे प्रेमी थे, मगर खूबसूरती के अतिरिक्त कमलिनी के अहसानों ने कुमार को ताबेदार बना लिया था और अभी उन्हें कमलिनी से बहुत कुछ उम्मीद थी तथा यह भी सोचते थे कि ऐसी तरकीब निकल आवे, जिससे इस अहसान का बदला चुक जाय, मगर इन बातों से कुमार के रंज होने का मतलब नहीं खुला। ख़ैर, जो हो पहिले यह तो मालूम हो कि कमलिनी है कौन!

वे दोनों आदमी भी छत पर आ पहुँचे थे जो माधवी को लाये थे, हाथ जोड़कर सामने बैठ गये। कमलिनी ने उनसे खुलासा हाल कहने के लिए कहा और उन दोनों में से एक ने इस तरह कहना शुरू किया– "हम दोनों हुक्म के मुताबिक यहाँ से जाकर माधवी को ख़ोजने लगे मगर उसका पता गयाजी और राजगृही के इलाकों में कहीं न लगा। लाचार होकर रोहतासगढ़ किले के पास पहुँचे और पहाड़ी के चारों तरफ घूमने लगे। कभी-कभी रोहतासगढ़ की पहाड़ी के ऊपर भी जाते और घूम-घूमकर पता लगाते कि वहाँ क्या हो रहा है। एक दिन रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर घूमते-फिरते यकायक हम दोनों एक खोह के मुहाने पर जा पहुँचे और वहाँ कई आदमियों के धीरे-धीरे बातचीत करने की आवाज़ सुनकर एक झाड़ी में जहाँ से उन लोगों की आवाज़ साफ सुनायी देती थी, छिप रहे। अन्दाज़ से यह मालूम हुआ कि वे लोग कई आदमी हैं और उन्हीं के साथ एक औरत भी है। नीचे लिखी बातें हम लोगों ने सुनी।"

एक : न मालूम हम लोगों को कब तक यहाँ अटकना और राह देखना पड़ेगा!

दूसरा : अब हम लोगों को यहाँ ज़्यादे दिन न रहना पड़ेगा, या तो काम हो जायेगा या खाली ही लौटकर चले जाने की नौबत आवेगी।

तीसरा : रंग तो ऐसा ही नज़र आता है, भाई जो हो, हमें तो यही विश्वास होता है कि बीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग तहख़ाने में घुस गये क्योंकि पहले कभी एक आदमी भी तहख़ाने में आता-जाता दिखायी नहीं देता था, बल्कि मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ कि कल उस कब्रिस्तान में हम लोगों ने जिसे देखा था, वह कोई ऐयार ही था।

चौथा : ख़ैर, और दो-तीन दिन में मालूम हो जायेगा।

औरत : तुम लोगों का काम चाहे जब हो, मगर मेरा काम तो आज हुआ ही चाहता है। माधवी और तिलोत्तमा को मैंने खूब ही धोखा दिया है। आज उसी कब्रिस्तान की राह से मैं उन दोनों को तहख़ाने में ले जाऊँगी।

एक : अब तुम्हें वहाँ जाना चाहिए, शायद माधवी वहाँ पहुँच गयी हो!

औरत : हाँ अब जाती हूँ पर अभी समय नहीं हुआ।

दूसरा : दम-भर पहिले ही पहुँचना अच्छा है।

यह बातें सुनकर मैं उन लोंगों को पहिचान गया, रामू वगैरह धनपतिजी के सिपाही लोग और औरत चमेला थी।

इतना सुनते ही कमलिनी ने रोका और पूछा, "जिस खोह के मुहाने पर वे लोग बैठे थे, वहाँ कोई सलई का पेड़ भी है?"

इसके जवाब में उन दोनों ने कहा, "हाँ हाँ, दो पेड़ सलई के वहाँ थे, पर उनके सिवाय और दूर-दूर तक कहीं सलई का पेड़ दिखायी नहीं दिया।"

कमलिनी : बस मैं समझ गयी, वह खोह का मुहाना भी तहख़ाने से निकलने का एक रास्ता है, शायद धनपति ने अपने आदमियों को कह रक्खा होगा कि मैं किशोरी को लिये हुए इसी राह से निकलूँगी, तुम लोग मुस्तैद रहना. इसी से वे लोग वहाँ बैठे थे।

एक : शायद ऐसा ही हो।

कुमार : धनपति कौन है?

कमलिनी : उसे आप नहीं जानते, ठहरिए, इन लोगों का हाल सुन लूँ तो कहूँगी। (उन दोनों की तरफ़ देखकर) हाँ तब क्या हुआ?

उसने फिर यों कहना शुरू कियाः-

"थोड़ी ही देर में चमेला वहाँ से उठी और एक तरफ़ को रवाना हुई, हम दोनों भी उसके पीछे-पीछे चले और सुबह की सुफेदी निकलना ही चाहती थी कि उस कब्रिस्तान के पास पहुँच गये जो तहख़ाने में जाने का दरवाज़ा है। हम दोनों एक आड़ की जगह में छिप रहे और तमाशा देखने लगे, उसी समय माधवी और तिलोत्तमा भी वहाँ आ पहुँचीं। तीनों में धीरे-धीरे कुछ बातें होने लगीं, जिसे दूर होने के सबब मैं बिल्कुल न सुन सका, आखिर वे तीनो तहख़ाने में घुस गयीं और पहरों गुजर जाने पर भी बाहर न निकलीं, हम दोनों यह निश्चय कर चुके थे कि जब तक वे तहख़ाने से न निकलेंगी, यहाँ से न टलेंगे। सवेरा हो गया बल्कि धीरे-धीरे तीन पहर दिन बीत गया। आखिर हम दोनों तहख़ाने में घुसने के इरादे से कब्रिस्तान में गये। वहाँ पहुँचकर हमारे साथी ने कहा, "आखिर हम लोग दिन-भर परेशान हो ही चुके हैं, अब शाम हो लेने दो तो तहख़ाने में चले।" मैंने भी यही मुनासिब समझा और हम दोनों आदमी वहाँ से लौटा ही चाहते थे कि तहख़ाने का दरवाज़ा खुला और चमेला दिखायी पड़ी, हम दोनों को भी चमेला ने देखा और पहिचाना, मगर उसको ठहरने या कुछ कहने का साहस न हुआ। वह कुछ परेशान मालूम होती थी और खून से भरा हुआ एक छुरा उसके हाथ में था। हम दोनों ने भी उसको कुछ टोकना मुनासिब न समझा और यह विचार कर कि शायद कोई और भी इस तहख़ाने से निकले, एक कब्र की आड़ में छिपकर बिचली कब्र अर्थात् तहख़ाने के दरवाजे की तरफ़ देखने लगे। चमेला हम लोगों के देखते-देखते भाग गयी और थोड़ी देर तक सन्नाटा रहा।

"थोड़ी देर बाद हम लोगों ने दूर से राजा बीरेन्द्रसिंह के ऐयार पण्डित बद्रीनाथ को आते देखा। वह तहख़ाने के दरवाजे पर पहुँचे ही थे कि अन्दर से तिलोत्तमा निकली और पण्डित बद्रीनाथ ने उसे गिरफ़्तार कर लिया। इसके बाद ही एक बूढ़ा आदमी तहख़ाने से निकला और पण्डित बद्रीनाथ से बातें करने लगा। हम लोगों को कुछ-न-कुछ वे बातें सुनायी देती थीं। इतना मालूम हो गया कि तहख़ाने के अन्दर खून हुआ है और इन दोनों ने तिलोत्तमा को दोषी ठहराया है, मगर हम लोगों ने खून से भरा हुआ छुरा हाथ में लिए चमेला को देखा था, इसलिए विश्वास था कि अगर तहख़ाने में कोई खून हुआ है तो ज़रूर चमेला के ही हाथ से हुआ, तिलोत्तमा निर्दोष है।

"पण्डित बद्रीनाथ और वह बूढ़ा आदमी तिलोत्तमा को लेकर फिर तहख़ाने में घुस गये। हम लोगों ने भी वहाँ अटकना मुनासिब न समझा और थोड़ी ही देर बाद हम लोग भी तहख़ाने में घुस गये तथा तहख़ाने की पचासों कोठरियों में घूमने और देखने लगे कि कहाँ क्या होता है। बद्रीनाथ थोड़ी ही देर बाद तहख़ाने के बाहर निकल गये और हम लोगों ने तिलोत्तमा को एक खम्भे के साथ बँधे हुए पाया। हम्मामवाली कोठरी में माधवी को पड़े हुए पाकर, हम लोग बड़े खुश हुए और उसे उठाकर ले भागे, फिर न मालूम पीछे क्या हुआ और किस पर क्या गुजरी।"* (* यहाँ पर तो पाठक समझ ही गये होंगे कि तहख़ाने में बड़ी मूरत के सामने जो औरत बलि दी गयी थी, वह माधवी की ऐयारा तिलोत्तमा थी और माधवी की लाश को ले भागने वाले ये ही दोनों कमलिनी के नौकर थे।)

कमलिनी : ताज्जुब नहीं कि वहाँ के दस्तूर के मुताबिक तिलोत्तमा बलि दे दी गयी हो।

एक : जो हो!

इतने ही में नीचे से एक लौंडी दौड़ी हुयी आयी और हाथ जोड़कर कमलिनी से बोली, "तारा आ गयी, तालाब के बाहर खड़ी है!"

तारा के आने की ख़बर सुनकर कमलिनी बहुत खुश हुई और खुशी के मारे कुँअर इन्द्रजीतसिंह की घबराहट का तो ठिकाना ही न रहा क्योंकि तारा ही की जुबानी रोहतासगढ़ का हाल और बेचारी किशोरी की ख़बर सुननेवाले थे और इसी के बाद कमलिनी का असल भेद उन्हें मालूम होने को था।

कमलिनी : (कुमार की तरफ़ देखकर) जिस तरह इन दोनों आदमियों को मैं तालाब के बाहर से लायी हूँ, उसी तरह तारा को भी लाना पड़ेगा।

कुमार : हाँ हाँ, उसे बहुत जल्द लाओ, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।

कमलिनी : आप क्यों तकलीफ करते हैं। बैठिए, मैं उसे अभी लाती हूँ। (दोनों आदमियों की तरफ़ देखकर) चलो तुम दोनों को भी तालाब के बाहर पहुँचा दूँ।

लाचार कुमार उसी जगह बैठे रहे। उन दोनों आदमियों को साथ लेकर कमलिनी वहाँ से चली गयी तथा थोड़ी देर में तारा को लेकर आ पहुँची। कुँअर इन्द्रजीतसिंह को देखकर तारा चौंकी और बोली–

तारा : क्या कुमार यहाँ विराज रहे हैं!

कमलिनी : हाँ, कई दिनों से यहाँ हैं और तुम्हारी राह देख रहे हैं।

तुम्हारी जुबानी रोहतासगढ़ और किशोरी तथा लाली और कुन्दन का असल भेद और हाल सुनने के लिए बड़े बेचैन हो रहे हैं। आओ मेरे पास बैठ जाओ और कहो क्या हाल है?

तारा : (ऊँची साँस लेकर) अफ़सोस, मैं इस समय बैठ नहीं सकती और न कुछ वहाँ का हाल ही कह सकती हूँ, क्योंकि हम लोगों का यह समय बड़ा ही अमूल्य है। कुमार को यहाँ देख मैं बहुत खुश हुई, अब वह काम बखूबी निकल जायगा! (कुमार की तरफ़ देखकर) बेचारी किशोरी इस समय बड़े ही संकट में पड़ी हुई है। अगर आप उनकी जान बचाना चाहते हैं तो इस समय मुझसे कुछ न पूछिए, बस तुरत उठ खड़े होइए और जहाँ मैं चलती हूँ चले चलिए, हाँ, यदि बन पड़ा तो रास्ते में मैं वहाँ का हाल आपसे कहूँगी। (कमलिनी की तरफ़ देखकर) आप भी चलिए और कुछ आदमी अपने साथ लेती चलिए मगर सब कोई घोड़े पर सवार और लड़ाई के सामान से दुरुस्त रहें।

कमलिनी : ऐसा ही होगा।

कुमार : (खड़े होकर) मैं तैयार हूँ।

तीनों आदमी छत के नीचे उतरे और तारा के कहे मुताबिक कार्रवाई की गयी।

सुबह की सुफेदी आसमान पर निकलना ही चाहती है। आओ देखो, हमारा बहादुर नौजवान कुँअर इन्द्रजीतसिंह किस ठाठ से मुश्की घोड़े पर सवार मैदान की तरफ़ घोड़ा फेंके चला जा रहा है और उसकी पेटी से लटकती हुई जड़ाऊ नयाम (म्यान) की तलवार किस तरह उछल-उछलकर घोड़े के पेट में थपकियाँ मार रही है, मानो उसकी चाल की तेज़ी पर शाबाशी दे रही है। कुमार के आगे-आगे घोड़े पर सवार तारा जा रही है, कुमार के पीछे सब्ज़ घोड़े पर कमलिनी सवार है और घोड़े की तेजी को बढ़ाकर कुमार के बराबर हुआ चाहती है। उसके पीछे दस दिलावर और बहादुर सवार घोड़ा फेंके चले जा रहे हैं और इस जंगली मैदान के सन्नाटे को घोड़ों के टापों की आवाज़ से तोड़ रहे हैं।

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